• January to March 2024 Article ID: NSS8480 Impact Factor:7.60 Cite Score:155 Download: 16 DOI: https://doi.org/24 View PDf

    भारत में कृषि एवं खाद्य सुरक्षा पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

      सुभाष कुमार भारती
        शोध छात्र (भूगोल) दयानंद गर्ल्स पी० जी० कॉलेज , कानपुर सम्वद्ध. छात्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय, कानपुर (उ.प्र.)
      डॉ. शशी बाला सिंह
        असिस्टेंट प्रोफेसर (भूगोल) दयानंद गर्ल्स पी० जी० कॉलेज , कानपुर सम्वद्ध. छात्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय, कानपुर (उ.प्र.)
  • शोध सारांश-   जलवायु परिवर्तन भारत में कृषि और खाद्य सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण चुनौतियाँ पैदाकरता है, भारत एक ऐसा देश जो आजीविका और भरण-पोषण के लिए अपने कृषि क्षेत्र पर बहुत अधिक निर्भर है। कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है।प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से देश की 55 प्रतिशत आबादी जलवायु संवेदनशील कृषि क्षेत्र पर निर्भर करती है। इस सारांशका उद्देश्य मौजूदा शोध और टिप्पणियों के आधार पर भारत में कृषि और खाद्य सुरक्षा पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को रेखांकित करना है।बढ़ते तापमान, परिवर्तित वर्षा प्रतिरूर्प,चरम मौसम की घटनाओं की बढ़ती आवृत्ति और बदलती जलवायु परिस्थितियाँ देश भर में कृषि उत्पादकता और खाद्य उत्पादन प्रणालियों को प्रभावित कर रही हैं। वर्षा प्रतिरूर्प में बदलाव जिसमें अनियमित मानसूनी बारिश और लंबे समय तक सूखा शामिल है फसल की खेती पानी की उपलब्धता और सिंचाई प्रथाओं के लिए चुनौतियां पैदा करता है। कृषि क्षेत्र गैस उत्सर्जन और भूमि उपयोग प्रभावों में एक प्रेरक शक्ति है जो जलवायु परिवर्तन का कारण बनता है। कृषि भूमि का एक महत्वपूर्ण उपयोगकर्ता और जीवाश्म ईंधन का उपभोक्ता होने के अलावा कृषि चावल उत्पादन और पशुधन पालन (कृषि एवं खाध संगठन, 2007) जैसी प्रथाओं के माध्यम से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में सीधे योगदान देती है। इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आई.पी.सी.सी., 2001)के अनुसार पिछले 250 वर्षों में ग्रीनहाउस गैसों में वृद्धि के तीन मुख्य कारण जीवाश्म ईंधन भूमि उपयोग और कृषि (आई.पी.सी.सी.,2001) रहे हैं। छोटे किसान जो भारत के कृषि कार्यबल का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं की असुरक्षा जलवायु परिवर्तन से प्रेरित जोखिमों जैसे कि फसल की विफलता कम पैदावार,कीटों और बीमारियों की बढ़ती घटनाओं के कारण बढ़ गई है। बाढ़, सूखा और चक्रवात सहित चरम मौसम की घटनाएं खाद्य उत्पादन को और खतरे में डालती हैं, आपूर्ति श्रृंखलाओं को बाधित करती हैं और विशेष रूप से ग्रामीण और हाशिए पर रहने वाले समुदायों में खाद्य वितरण नेटवर्क को प्रभावित करती हैं। एक अनुमान है कि, 1975-76 से 2008-09 की अवधि के दौरान खाद्यान्न का क्षेत्रफल 126.18 मिलियन हेक्टेयर से गिरकर 122.83 मिलियन हेक्टेयर हो गया तथा 2020-21 में बढ़कर 129.34 हों गया। उस अवधि के दौरान उत्पादन में क्रमशः 121.03 मिलियन टन, 234.47 मिलियन टन तथा 308.65 मिलियन टन की वृद्धि दर्ज की गई। अध्ययन से यह भी पता चलता है कि खरीफ सीजन में खेती के रकबे में बड़े पैमाने पर उतार-चढ़ाव होता है। कुछ मामूली उतार-चढ़ाव के साथ, खरीफ सीजन में खेती का क्षेत्रफल 1966-67 में 78.21 मिलियन हेक्टेयर, 1983-84 में 84.14 मिलियन हेक्टेयर से बढ़कर  2020-21 में बढ़कर 88.21 हो गया है। जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को अपनाने के लिए व्यापक रणनीतियों की आवश्यकता होती है जो जलवायु-लचीली कृषि प्रथाओं, जल प्रबंधन तकनीकों, फसल विविधीकरण और सिंचाई और भंडारण के लिए बेहतर बुनियादी ढांचे को एकीकृत करती हैं। संरक्षण कृषि, कृषि वानिकी और सटीक खेती जैसी जलवायु-स्मार्ट कृषि प्रथाओं को अपनाने के माध्यम से कृषि प्रणालियों की लचीलापन बढ़ाने से जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों को कम करने और किसानों के बीच अनुकूली क्षमता का निर्माण करने में मदद मिल सकती है।यह पेपर जलवायु परिवर्तन चुनौती पर साक्ष्यों की समीक्षा करता है, और भारत में कृषि और खाद्य सुरक्षा पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का आकलन करता है। तथा भारतीय कृषि पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का अनुमान भी लगाता है।

    शब्द कुंजी- भारतीय कृषि, जलवायु परिवर्तन, खाद्य सुरक्षा।