• January to March 2024 Article ID: NSS8473 Impact Factor:7.60 Cite Score:8001 Download: 125 DOI: https://doi.org/14 View PDf

    दक्षिण अरावली क्षेत्र में निवासरत कथौडी जनजाति का ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक जीवन

      डाॅ. सुदर्शन सिंह राठौड
        सह आचार्य, राजकीय मीरा कन्या महाविद्यालय, उदयपुर (राज.)

  • प्रस्तावना- मानव आरम्भ से प्रकृति पर निर्भर रहा हैं। वन्य अत्पादों से अपना एवं अपने परिवार का पेट भरने का कार्य सरलता से करता आया हैं। प्रकृति ने उसे बहुत कुछ दिया हैं। वर्तमान में भी कुछ जातियाँ पूरी तरह प्रकृति पर निर्भर हैं जिनमें कथौडंी जनजाति अग्रणी हैं। कथौडी लोग जंगली उत्पादों यथा गोद, महुए के फुल, डोलमा, मूसली लकडी एवं शहद एकत्रित करके बेचते हैं। उससे अपने परिवार का पालन करते हैं। महुआ के फूलों से शराब बनाकर बेचना एवं पीना इनकी दिनचर्या का मुख्य भाग हैं। इस जनजाति में शराब एवं मांस का मुख्य स्थान हैं। सुबह की शुरूआत ही शराब सेवन से होती हैं। स्त्री और पुरूष दोनो ही नशे के आदी हैं। शिक्षा का इस जाति में नितान्त अभाव हैं। बच्चे भी माता पिता की आदतों के शीघ्र ही शिकार हो जाते हैं। बाल विवाह के कारण शारीरिक एवं मानसिक विकास भी अवरूद्ध हो जाता हैं। फलस्वरूप युवा भी अपने पूर्वजों की राह पर चल पडते हैं। सरकारी सहायता के रूप में घर एवं अनाज मिल जाता हैं अतः नशे का ही जुगाड़ शेष रहता है। सात्विक जीवन या धार्मिक प्रवृत्ति का नितान्त अभाव देखने को मिलता है।

    मुख्य शब्द- जनजाति,अंधविश्वास,रूढिवादिता,नशाखोरी,शराब।