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January to March 2024 Article ID: NSS8476 Impact Factor:7.60 Cite Score:10422 Download: 143 DOI: https://doi.org/18 View PDf
निमाड की भावपूर्ण विरासत: भित्तिचित्र
डॉ. रश्मि दीक्षित
सहायक प्राध्यापक पुनमचंद गुप्ता वोकेशनल महाविद्यालय, खंडवा (म.प्र.)
प्रस्तावना- लोक कला जनसाधारण की सहज अभिव्यक्ति है। यह मानव सभ्यता के साथ प्रारंभ हुई
और उसके साथ ही निरंतर बढ़ती जा रही है। मानव सभ्यता के धार्मिक विश्वासों और आस्थाओं
के साथ बलवती होती जा रही है। लोक कला का विकास आदिम कला से ही माना जाता है। आदिम
काल मनुष्य की वह अवस्था है जब वह घने जंगलों में रहता था और संघर्ष में जीवन जीता
था। विपरीत परिस्थितियों में स्वयं को सुरक्षित रखने का प्रयत्न करता था। इन विपरीत
परिस्थितियों से जूझते हुए भी उसने सौंदर्य भावनाओं को व्यक्त करने का प्रयत्न किया।
उसने जीवन संघर्ष को विभिन्न अवसरों पर महसूस किया और इसी सौंदर्य बोध का विकास अपने
परिश्रम से निरंतर करता गया। कला के रूपों की यह विकास यात्रा किसी एक स्थान से संबंधित
नहीं है वरन् यह समस्त मानव जाति से संबंधित है। यह कला मानस की प्रेरणा से ही बढती
है और मानस को ही दिखाती है। लोक कला आत्मिक शांति, मर्यादा एवं मंगल की भावना से ओतप्रोत
रहती है ।लोक कला अपने परंपरागत विश्वास, धारणाओं, आस्थाओं और रचनात्मक संकेतों से
प्रेरणा लेकर बढ़ती जाती है। इसका उदय समाज के रीति-रिवाजों पर आधारित हैं जो परंपरागत
रीति रिवाजों में परिवर्तन के साथ बदलता जाता है।