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January to March 2024 Article ID: NSS8478 Impact Factor:7.60 Cite Score:379318 Download: 870 DOI: https://doi.org/20 View PDf
भारतीय समाज में साधु-सन्यासियों की परम्पराओं के प्रकार व प्रकृति
डाॅ. प्रमिला वाधवा
प्रभारी प्राचार्य एवं सहायक प्राध्यापक (समाजशास्त्र) शासकीय महाविद्यालय, सारनी, जिला बैतूल (म.प्र.)
प्रस्तावना-
भारत में साधुओं का इतिहास हजारो साल पुराना है। वेद पुराणों में भी साधु परम्पराओं
के होने के प्रमाण मिलते है। इन्होंने हिन्दु धर्म को काफी हद तक प्रभावित किया है।
साधु और सन्यासी भी कई प्रकार के होते है। सभी के अपने अपने मत विचारधाराऐं व नियम
है, वैसे तो साधु शब्द का अर्थ होता है“ सज्जन व्यक्ति” इसका मतलब है प्रत्येक व्यक्ति जो दयालु है, परोपकारी और सबकी सहायता करने
वाला है वह साधु है। साधु का कोई भेष व नियम नहीं होता है, लेकिन वर्तमान समय में साधु
उन्हें कहा जाता है जो सन्यास धारण करते हैं यज्ञ और तपस्या करते है, गेरूऐं, सफेद
एवं भगवाधारी वस्त्र धारण करते है ऐसे सन्यासी साधु परम्पराओं के किसी एक सम्प्रदायों
को मानते है और उसका ही अनुसरण करते है।
भारतीय साधुओं का इतिहास कुछ सालों का
नहीं अपितु हजारों वर्ष पुराना है। भारतीय इतिहास में हिन्दु धर्म को साधु परम्परा
ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया है। भारतीय संस्कृति के अनुसार जो भी व्यक्ति साधुत्व
अपनाता है उसे अपने सांसारिक जीवन व भौतिकता से मुक्त होना होता है तभी वह साधु परम्पराओं
को निभा सकते है, एक साधु को समाज से पूर्ण रूप से मुक्त होना होता है।
भारतीय समाज में साधुओं का एक सम्प्रदाय
जिसे शैव सम्प्रदाय कहते है, उसमें सन्यास ग्रहण करने से पूर्व ही व्यक्ति का प्रतीकात्मक
रूप से अंतिम संस्कार कर दिया जाता है, जिसका अर्थ है कि वह व्यक्ति समाज के लिए मृत
हो जाता है और सन्यासी के रूप में उनका नया जन्म होता है, जबकि वैष्णव सम्प्रदाय के
नियम शेव सम्प्रदाय से थोड़ा कम कठोर होता है।
