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January to March 2024 Article ID: NSS8481 Impact Factor:7.60 Cite Score:12866 Download: 159 DOI: https://doi.org/25 View PDf
भारतीय संस्कृति, साहित्य एवं पर्यावरण
डॉ. जी. एल. मालवीय
सहायक प्राध्यापक (वाणिज्य) सुभद्रा शर्मा शासकीय कन्या महाविद्यालय, गंजबासौदा, जिला- विदिशा (म.प्र.)डॉ. खुमेश सिंह ठाकुर
सहायक प्राध्यापक (अर्थशास्त्र) सुभद्रा शर्मा शासकीय कन्या महाविद्यालय, गंजबासौदा, जिला- विदिशा (म.प्र.)
प्रस्तावना-
संस्कृति शब्द सम् उपसर्ग पूर्वक ’कृ’
धातु से कृत प्रत्यय लगाकर निष्पन्न होता है। इसका शाब्दिक अर्थ है-
उत्तम बनाना, संशोधन करना अथवा परिष्कार करना। इसमें पैतृक निपुणता, श्रेष्ठाताये,
कला-प्रियता, विचार, आदते और विशेषतायें सम्मिलित रहती है। इस प्रकार संस्कृति का संबंध
धर्म एवं दर्शन से लेकर सामाजिक परम्पराओं रीति-रिवाजों तथा मानव जीवन की सभी महत्वपूर्ण
वैचारिक क्रियाओं से रहता है। डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल ने ’जीवन के नानाविध रूपों के
समुदाय को तथा डॉ. हजारी प्रसाद त्रिवेदी ने ’सभ्यता के आंतरिक प्रभाव को संस्कृति
माना है। इस प्रकार संस्कृति का न केवल मानवीय संस्कारों से अपितु मानव जीवन के भौतिक,
सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, आध्यात्मिक, धार्मिक, दार्शनिक एवं साहित्यिक सभी प्रकार
के विकास क्रमों से सतत संबंध रहा है।
निष्कर्षतः
संस्कृति के माध्यम से ही मनुष्य अपने श्रेष्ठ मानवीय मूल्यों की प्राप्ति में अग्रसर
एवं प्रयासरत होता है। इसी सतत् प्रवहणशील सांस्कृतिक प्रक्रिया के माध्यम से व्यक्ति
समाज अथवा राष्ट्र अपनी सर्वविध कलात्मक अभिवृत्तियों को क्रियान्वित करता है। भारतीय
संस्कृति की कतिपय ऐसी मौलिक विशिष्टतायें है जिनके कारण यह आज भी संसार की अन्य संस्कृतियों
के लिये अनुकरणीय एवं प्रेरणास्पद बनी हुई है।