
-
January to March 2024 Article ID: NSS8484 Impact Factor:7.60 Cite Score:79306 Download: 397 DOI: https://doi.org/30 View PDf
भारत में तलाक की समस्या
डाॅ.पूजा तिवारी
सहा. प्राध्यापक एवं विभागाध्यक्ष (समाज शास्त्र विभाग) शासकीय महाविद्यालय, बिछुआ, जिला छिन्दवाडा (म.प्र.)
प्रस्तावना-
विवाह प्रत्येक समाज की अनिवार्य संस्था है ,भले ही इसका स्वरूप देशकाल तथा परिस्थितियों
में अलग -अलग पाया जाता हो। ‘‘ यौन प्रवृत्तियों को व्यवस्थित स्वरूप प्रदान करने के
लिए ही विवाह नामक संस्था का जन्म हुआ। अनेक स्त्री - पुरूषों को विवाह असीम सुख,शांति
तथा संतोष प्रदान करता है एवं उनके जीवन को व्यवस्थित बनाता है किंतु कई बार दुर्भाग्यवश
विवाह का बुरा प्रतिसाद ‘‘ तलाक ’’ के रूप में भी मिलता है।
इलियट एवं मेरिज के अनुसार ‘‘ तलाक हमेशा दुखांत एवं रिश्तों
का अंतिम विसर्जन के रूप में होता है। ’’ तलाक पारिवारिक तनाव का प्रमुख लक्षण होता
है ,जिससे पारिवारिक विघटन एवं सामाजिक विघटन होता है। हिन्दू या सिक्ख धर्म में
‘‘ तलाक ’’ की कोई अवधारणा नहीं है, ऐसा कहा जाता है कि मृत्यु के सिवा कोई ओर किसी
भी दंपति को अलग नहीं कर सकता है। तलाक की अवधारणा भारत में मुस्लिम शासनकाल के बाद
समाज में आयी। आज तलाक की दर तेजी से बढ़ रही है ,फिर भी भारत में लगभग 10 प्रतिशत जबकि
विदेशों में 50 प्रतिशत की दर तलाक के संबंध में देखी गई है। मुस्लिम समाज में तलाक
आसान प्रक्रिया है जबकि हिंदु समाज में जटिल प्रक्रिया है । तलाक किसी भी परिवार के
लिए दुखद घटना है। जिससे मानसिक अशांति एवं खासतौर पर बच्चों पर इसका कुप्रभाव पड़ता
है। ऐसा माना जाता है कि पश्चिमी संस्कृति के सम्पर्क में आने से भारत में तलाक की
संख्या बढ़ रही है।














