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January to March 2024 Article ID: NSS8486 Impact Factor:7.60 Cite Score:11465 Download: 150 DOI: https://doi.org/37 View PDf
पिलखुवा में हथकरघा उद्योग के विकास पर समस्याओं और संभावनाओं के बारे में विशेष अध्ययन
मानवी शर्मा
शोधार्थी (डिजाइन विभाग) वनस्थली विद्यापीठ, वनस्थली (राज.)डाॅ. ईशा भट्ट
असिस्टेंट प्रोफेसर (डिजाइन विभाग) वनस्थली विद्यापीठ, वनस्थली (राज.)
शोध
सारांश- हथकरघा एक विशेष तकनीकी है
जो पूरे भारत में गाँव और अर्द्धशहरी क्षेत्रों में साधारण कपड़ों के साथ-साथ विशेष
कपड़ों का भी उत्पादन करता है। वर्तमान में हथकरघा उद्योग के क्षेत्रों में पावर लूम
के कारण भारी गिरावट आई है। जिसका एक कारण यह भी है कि वर्तमान में हथकरघा उद्योग विकेन्द्रीकृत
हो गये हैं। पश्चिम बंगाल पारंपरिक रूप से कपास, हथकरघा और जूट यार्न के लिए समृद्ध
है। हथकरघा में जूट और जूट मिश्रित यार्न की बुनाई के दौरान बुनकरों को जूट फाइबर के
खुरदरेपन के कारण कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है।उत्तर प्रदेश में पूर्व समय से ही
हथकरघा उद्योग को अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है। ऐसा माना जाता
है कि हथकरघा उद्योग मुगल और बादशाओं के समय से शुरू हो गया था। 18वीं शताब्दी से ही
प्रारभ इस कार्य में भिन्न-भिन्न प्रकार के सुन्दर रूप से अभिकल्पन करके उनको विशेष
तरीको से हाथों द्वारा बनाये जाने के लिए ये उद्योग विख्यात है। ये क्षेत्र वस्त्रों
पर सौंदर्य से भरपूर डिजाइन बनाने के लिए प्रसिद्ध माना जाता है। इस उद्योग क्षेत्र
में विदेशी मुद्रा हासिल करने का प्रमुख स्थान सूती वस्त्र उद्योग है। व्यवसाय रूप
से अगर तुलनात्मक वर्णन किया जाये तो कपड़ा आय का प्रमुख स्त्रोत माना गया है। इसी के
साथ-साथ रेशमी और ऊनी वस्त्र व्यवसाय की तुलना में सूती वस्त्र उद्योग को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है।
शब्द
कुंजी-उत्तर प्रदेश, हथकरघा उद्योग, पिलखुवा
में समस्याऐ ,संभावनाऐ।