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January to March 2024 Article ID: NSS8495 Impact Factor:7.60 Cite Score:35111 Download: 264 DOI: https://doi.org/47 View PDf
शमशेर बहादुर सिंह के काव्य में भाषा, बिम्ब और प्रतीक
डॉ. ज्योति सिंह
प्राध्यापक (हिंदी) शासकीय कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय, रीवा (म.प्र.)शिवऔतार
शोधार्थी (हिंदी) अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय, रीवा (म.प्र.)
प्रस्तावना-
शमशेर बहादुर सिंह के काव्य में भाषा, बिम्ब
और प्रतीक इस शोध पत्र का वण्र्य विषय है। इसकी शोध परक विवेचना करने के पूर्व इसके
सार रूप पर संक्षिप्त प्रकाश डालना उचित प्रतीत होता है। शमशेर बहादुर सिंह के काव्य
में भाषा, बिम्ब और प्रतीक की यथार्थ परक झांकी देखी जा सकती है। इस शोध लेख में शमशेर
बहादुर सिंह के काव्य में भाषा बिम्ब और प्रतीक
की शोधात्मक विवेचना की गई है।
कवि जब अपनी अनुभूित
को संप्रेषित करता है तो उसकी पहली आवश्यकता भाषा होती है। भाषा ही वह माध्यम है जिसके
द्वारा एक व्यक्ति का अनुभव दूसरे तक पहुँचता है। इसी से यह संप्रेषण का सार्थक सेतु
सिद्ध होती हैं और उसका सेतुत्व तभी सफल होता है जब अनुभूतियों के वजन को वह ठीक-ठाक
ढंग से संभाल लेता है। कवि की अनुभूतियाँ जब तक इस सेतु से आसानी से किन्तु प्रभावी
ढंग से पाठक तक पहुंचती हैं तभी तक उसकी सार्थकता है किसी अनुभव को कह देना एक बात
है, उसे प्रभावी ढंग से कहना बिल्कुल दूसरी बात है और उसे पाठकीय संवेदना में उतार
देना तीसरी और महत्वपूर्ण बात है। कहना तो हर आदमी को आ सकता है, प्रभावी ढंग से कहना
वक्ता का कौशल है और ऐसे कौशल से कहना कि वह मन में गहरे उतर कर अर्थ की गाँठों को
स्वयं खोल दे या वे खुद ख्ुल जायें कलाकार की सार्थक अभिव्यंजना का प्रमाणीकरण है।
इसी बिन्दु पर आकर कविता-कविता है।