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January to March 2024 Article ID: NSS8506 Impact Factor:7.60 Cite Score:7272 Download: 119 DOI: https://doi.org/58 View PDf
जनजातियों के शैक्षिक सुधार हेतु सरकार द्वारा उपलब्ध सुविधाओं का अध्ययन
अमित कोटेड
शोधार्थी (इतिहास) मानविकी संकाय मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर (राज.)
प्रस्तावना- शिक्षा जीवन पर्यन्त चलने
वाली प्रक्रिया है जो व्यक्ति की प्रकृति प्रदत्त शक्तियों का विकास करती है। मनुष्य
शैक्षिक प्रक्रिया में उद्भव से अवसान तक निरन्तर ज्ञान, अनुभवों, कौशलों एवं व्यवसायिक
दक्षताओं को अपनी रूचि, योग्यता, वातावरण, सुविधा, आवश्यकता तथा परिस्थिति के अनुसार
सीखता एवं अर्जित करते जाता है। शिक्षा मनुष्य की जन्मजात शक्तियों के सामंजस्य पूर्ण
स्वाभाविक विकास में सहयोग देकर उसका सर्वांगीण विकास करती है तथा उन्हें अपने वातावरण
में सामंजस्य स्थापित करने में सहायता प्रदान करती है। शिक्षा के माध्यम से ही देश
व समाज अपनी संस्कृति की रक्षा करता है। जीवन में उदारता, उच्चता, चिन्तन, सृजन, सौन्दर्य
एवं उत्कृष्टता शिक्षा द्वारा ही संभव है। समाज के बदलते स्वरूप के कारण जीवन के प्रत्येक
क्षेत्र में अनेक संभावनाएँ और समस्याएँ जन्म ले रही हैं। इन संभावनाओं और समस्याओं
की खोज तथा समाधान शिक्षा द्वारा ही संभव है।
भारत अनेक सामाजिक-सांस्कृतिक विविधताओं के साथ आदिकाल
से ही विभिन्न धर्मो, मतों, संप्रदायों, संस्कृतियों, प्रजातियों, जातियों और जन-जातियों
की कर्मभूमि रहा है। भारत की संपूर्ण जनसंख्या का लगभग 8 प्रतिशत भाग आदिम जातियों
का है। आदिम या अनुसूचित जनजाति भारत के प्राचीनतम निवासी माने जाते हैं। देश के दूर
वनांच्छादित पठारों, पहाड़ियों तथा बीहड, अगम्य अंचलों में कई जनजातियां निवास करती
हैं इन्हें वन्यजाति, आदिवासी, वनवासी, जनजाति और गिरिजन आदि नामों से संबोधित किया
जाता है। शिक्षा का दायित्व समाज के विभिन्न वर्गों को साथ लाना और एकजुट समतावादी
समाज का निर्माण करना है परंतु इन जनजातियों के विद्यार्थियों में सामाजिक एवं आर्थिक
स्थितियों के कारण शाला में उपस्थिति संबंधी अनियमितता एवं शाला त्याग देखने को मिलता
है।