• January to March 2024 Article ID: NSS8516 Impact Factor:7.60 Cite Score:209 Download: 19 DOI: https://doi.org/68 View PDf

    वर्तमान विधिक शिक्षा एवं विधिक व्यवस्था एक मूल्यांकन

      डाॅ. ज़ाकिर खान
        प्राचार्य, सांदीपनि विधि महाविद्यालय, उज्जैन (म.प्र.)
  • प्रस्तावना-  भारत के संदर्भ में विधिक शिक्षा  से आशय  अपना विधिक व्यवसाय प्रारंभ करने से पूर्व छात्रो  को दी जाने वाली शिक्षा  से है। भारत में विधि की शिक्षा  परम्परागत विश्वविद्यालयों के साथ-साथ केवल विधिक शिक्षा हेतु स्थापित कुछ विश्वविद्यालयों द्वारा भी दी जाती हैं। सभी को स्पष्ट रूप से यह ज्ञात है कि भारतीय विधिक व्यवस्था में विधि की अज्ञानता या अनभिज्ञता को कानूनी बचाव के रूप में मान्यता दी जाती हैं। इसका तात्पर्य यह हैं कि यदि कोई भी व्यक्ति अज्ञानतावश किसी भी कानून का उल्लघंन कर देता हैं तो न्यायालय इस आधार पर कि उल्लघंनकर्ता को उस कानून की जानकारी नही थी कोई रियायत या लाभ नही दे सकता हैं।

        अपनी दैनिक चर्चा में हम ऐसे कई कार्य करते हैं जिनके बार में कानून क्या कहता है- इसकी हमें इसकी जानकारी नही होती है। विधिक ज्ञान इतना महत्वपूर्ण होते हुये भी हमारी शिक्षा  प्रणाली में कानूनी शिक्षा अपना वांछित स्थान नही प्राप्त कर पाई। एक तरफ तो सामान्य नागरिको को विधिक शिक्षा नही दी जाती हैं और दूसरी तरफ विधिक अज्ञानता के लिये दण्डित किया जाना अभी तक की सरकारो की बड़ी विफलता हैं वर्तमान में विधिक शिक्षा से तात्पर्य भविष्य में विधि को अपनी आय का साधन बनाने वालो को दी जाने वाली विधिक शिक्षा तक ही सीमित हैं जैसे वकील, जज, विधिक परामर्श दाता, प्राध्यापक इत्यादि। वर्तमान परिदृष्य में बढ़ते इंटरनेट के उपयोग एवं अंतराष्ट्रीय व्यापार-व्यवसाय को दृष्टिगत रखते हुए विधिक शिक्षा  व्यवस्था में वृद्धि कर न्यूनतम विधिक शिक्षा का निर्धारण कर प्रत्येक देशवासी को इसे प्रदान करने की आवश्यकता हैं।