• January to March 2024 Article ID: NSS8540 Impact Factor:7.60 Cite Score:9347 Download: 135 DOI: https://doi.org/92 View PDf

    साहित्य मे स्त्री विमर्श की आवश्यक

      डाॅ. सरला पण्ड्या
        कार्यवाहक प्राचार्य (हिन्दी विभाग) हरिदेव जोशी राजकीय कन्या महाविद्यालय, बाँसवाड़ा (राज.)
  • प्रस्तावना- समकालीन महिला लेखिकाओं में उषा प्रियंवदा, मन्नू भंडारी, कृष्णा सोबती, मृदुला गर्ग, मंजुला भगत, नासिरा शर्मा, प्रभा खेतान, कृष्णा अग्निहोत्री एवं ममता कालिया का महत्वपूर्ण स्थान है। आठवें दशक की इन महिला उपन्यासकारों की लेखन शैली में भावुकता के स्थान पर तर्क, विचार, बुद्धि, सुक्ष्म अन्वेषण, विश्लेषण व रचनात्मक दृष्टिकोण दिखाई देता है। व्यक्ति और समाज के बदलते संबंधों, तनावपूर्ण जीवन शैली, व्यक्ति के अंतः संघर्ष से उत्पन्न द्वन्द्वात्मक स्थिति के साथ ही सामयिक जीवन संदर्भों के परिपे्रक्ष्य में स्त्री विकास की अनेक संभावनाओं को उजागर किया है। उन्होंने स्त्री की बदलती भूमिका व उसके सकारात्मक एवं नकारात्मक पहलुओं पर चिंतन भी किया है। इन लेखिकाओं ने समाज की परिस्थितियों को देखा व अनुभव किया है इसके पश्चात् ही उसे साहित्य रचना में उतारा है।