-
January to March 2024 Article ID: NSS8561 Impact Factor:7.60 Cite Score:4215 Download: 90 DOI: https://doi.org/ View PDf
निजी संग्रह में संग्रहित मौलिक स्त्रोत (निजी संग्रह: धर्मलाल शर्मा)
डाॅ. भगवती नागदा
सहायक आचार्य (इतिहास) गुरूनानक कन्या स्नात्कोत्तर महाविद्यालय, उदयपुर (राज.)
प्रस्तावना- राजस्थान के इतिहास में
मेवाड़ की वीर भूमि अपने अप्रतिम शौर्य और आत्माभिमान के कारण विश्व विख्यात रही है।
मेवाड़ को शिविजनपद प्राग्वाट, मेदपाट, उदयपुर आदि नामों से जाना जाता है। मेवाड़ ’राजवंश
के राजाओं ने सदैव अपनी मान-मर्यादा की रक्षा की है। यहाँ के कर्मनिष्ठ महाराजाओं ने
विषम’ परिस्थितियों में भी अपनी प्रजा का ध्यान
रखा। मेवाड़ की सुन्दरता में अभिवृद्धि के लिए महाराजाओं ने कई रचनात्मक कार्य किए जो
वर्तमान में भी असंख्य पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र है। उदयपुर में जनकल्याणकारी
कार्य यथा उद्यान, स्कूल, अनाथालय, चिकित्सालय आदि का निर्माण किया गया। उद्यानों में
नालियों तथा फव्वारों की व्यवस्था की गई। उद्यान के चारों ओर दीवारों का निर्माण किया
गया। यहाँ के महाराणा उद्यानों को फलों के वृक्षों तथा फुलों से सुसज्जित करने के लिए
बाहर से जैसे सहारपुर, कश्मीर, मद्रास आदि से बीज मंगवाते थे। पौधों के साथ बड़़, नीम
तथा पीपल के वृक्ष भी लगवाए जाते थे। उद्यानों में औषधीय वृक्षों को भी लगवाया जाता
था, उद्यानों के निर्माण के लिए महाराणाओं ने सामन्तों, ब्राह्मणों, वेश्यों तथा मालियों
को उदयपुर के हवाले के अन्दर व बाहर कई बीघा भूमि आवंटित की।