• January to March 2024 Article ID: NSS8576 Impact Factor:7.60 Cite Score:17628 Download: 186 DOI: https://doi.org/ View PDf

    हिंदी साहित्य में नारी चेतना

      राज कुमार
        शोध छात्र (राजनीति विज्ञान) मेरठ कॉलेज, मेरठ (उ.प्र.)
  • प्रस्तावना-  भारतीय संस्कृति में नारी का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। स्त्री और पुरुष ईश्वर की दो समान धर्मी कृतियां हैं। दोनों एक दूसरे की पूरक हैं। स्त्री पुरुष मिलकर जीवन की एक महत्वपूर्ण इकाई का निर्माण करते हैं। दांपत्य शब्द इसी स्थिति को पुष्ट करता है। हमारी संस्कृति में स्त्री की शक्ति की महिमा इसी बात से पुष्ट होती है कि वह न तो पुरुष की अनुगामिनी है, अपितु वह पूरक है, उसकी जीवन साथी है, सहधर्मिणी है। प्राचीन भारतीय मनीषियों ने नारी के स्थान की जितनी सुंदर अभिव्यक्ति वेदों में वर्णित की है उतनी अन्यत्र दुर्लभ है। वैदिककाल में नारियों के प्रति बड़ा आदरभाव था। परिवार की प्रमुख संरचना विवाह का उद्देश्य केवल वासनापूर्ति न होकर गृहस्थ धर्म का पालन, धर्म अनुष्ठान, यज्ञ संपादन और दांपत्य जीवन द्वारा श्रेष्ठ संतान की प्राप्ति भी था। घर गृहस्थी में स्त्री की प्रधानता थी। परिवार की सभी गतिविधियों के केंद्र में स्त्री थी। कन्या में ही धन की देवी लक्ष्मी का निवास माना जाता था। वैदिक संस्कृति में स्त्री शिक्षा का भी महत्व था। उस समय पुत्र व पुत्री के पालन पोषण, शिक्षा दीक्षा आदि में कोई भेदभाव नहीं था। मैथिलीशरण गुप्त ने भी अपनी लेखनी से आर्य स्त्रियों के स्थान को पुरुष समाज में निर्धारित करते हुए माना है कि वे सदगृहस्थी की वाहक दैवीय शक्ति के समान थीं।