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January to March 2024 Article ID: NSS8584 Impact Factor:7.60 Cite Score:107631 Download: 463 DOI: https://doi.org/ View PDf
अभिज्ञानशाकुन्तलम् में वर्णित शृंगार रस का स्वरूप
मुकेश दायमा
सहायक आचार्य (संस्कृत) राजकीय महाविद्यालय, परतापुर, गढ़ी, जिला बाँसवाड़ा (राज.)
प्रस्तावना- महाकवि कालिदास विश्वविख्यात काव्य स्रष्टा, कवि-कुल-गौरव,
सत्यम् शिवं-सुन्दरम् को समावेशित कर शाश्वत सनातन भारती का साज शंृगार करने वाले एक
सफल महाकाव्यकार, सर्वोत्कृष्ट नाटककार एवं गीति काव्य के प्रेणेता हैं। वे न केवल
संस्कृत अपितु सम्पूर्ण जनचेतना की साहित्यिक समृद्धि के एकमात्र प्रतिनिधि कवि हैं।
इन्होनें वैदिककाल से लेकर अपने युग तक जिन सशक्त विचारों एवं शाश्वत भावों का चित्रण
किया है, वे सदैव युगों युगांे तक पाठकों के हृदयों को अभिभूत करते रहेंगे। उनके बारे
में यह कथन अतिशयोंक्तिपूर्ण नही होगा की महाकवि कालिदास सच्चे अर्थों में सौन्दर्य
और प्रेम के कला प्रधान कवि है क्योंकि उनकें काव्यों में जीवन की समस्त अनुभूतियों
के होने से सभी रस दृष्टिगत होतें हैं परन्तु शंृगार रस को ही उन्होंने प्रधानता दी
है। उनका शंृगार संयोग से मधुर तथा वियोग से कारूणिक है। प्रकृति द्वारा प्रदत्त ऐन्द्रिय
जीवन का सहज, सुलभ, सजीव एवं सशक्त अनुवचन तथा सौन्दर्य की विशिष्टता से जन-जीवन कें
सम्पूर्ण अस्तित्व को ऐन्द्रिय आभा से आलोकित कर उसे रससिक्त भाषावली में अभिव्यक्ति
प्रदान करना, यही महाकवि कालिदास की बहुमुखी प्रतिभा पूर्णरूप से प्रस्फुटित हुई हैं।
उनकी रचनाओं में ”अभिज्ञान शाकुन्तलम्”नाटक न केवल भारतवर्ष में
अपितु सम्पूर्ण विश्व का सर्वोत्तम नाटक रत्न है।अभिज्ञान शाकुन्तलम् का अनुवाद संसार
की प्रमुख भाषाआंे में किया गया है।














