• January to March 2024 Article ID: NSS8615 Impact Factor:7.67 Cite Score:22317 Download: 210 DOI: https://doi.org/ View PDf

    भारत में एकात्म मानववाद की वर्तमान प्रासंगिकता

      ओमप्रकाश योगी
        व्याख्याता (राजनीति विज्ञान) श.ज.वै.रा.उ.मा.वि.मातृकुण्डिया, राशमी, जिला- चित्तौड़गढ़ (राज.)
  • प्रस्तावना-  पं. दीनदयाल उपाध्याय द्वारा प्रतिपादित एकात्म मानववाद एक ऐसी विचारधारा है जो एक चक्र के माध्यम से प्रस्तुत की जा सकती है जिसकी धुरी में व्यक्ति, व्यक्ति से जुड़ा एक परिवार, परिवार से जुड़ा हुआ एक समाज, जाति फिर राष्ट्र, विश्व और फिर अनंत ब्रह्मांड को अपने में सम्मिलित किये हुए है। एकात्म मानववाद का प्राथमिक उद्देश्य प्रत्येक व्यक्ति और समाज की आवश्यकता को संतुलित करते हुए प्रत्येक मानव को गरिमापूर्ण जीवन सुनिश्चित करना है। सतत् विकास के साथ विकास को आगे बढ़ाना है जिससे भावी पीढ़ियों को भी संसाधनों का पुनः उपयोग करने में सुलभता हो सके।

    आज पूरे विश्व भर में जलवायु आपदाएं बढ़ती जा रही है जिससे संधारणीय विकास में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। वैश्विक स्तर पर बड़ी संख्या में लोगों को गरीबों का सामना करना पड़ रहा है। कई नए मॉडल इन समस्याओं से निपटने के लिए लाए गए किंतु वे सभी असफल होते दिख रहे हैं।