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January to March 2024 Article ID: NSS8629 Impact Factor:7.67 Cite Score:9722 Download: 138 DOI: https://doi.org/ View PDf
भील जनजाति और स्वतंत्रता संघर्ष
कमलेश कुमार नाथ
एम ए, नेट (जेआरफ) (इतिहास) हरणी महादेव रोड नया समेलिया, भीलवाड़ा (राज.)
प्रस्तावना- भील राजपूताना की एक प्राचीन
जनजाति हैं। राजस्थान में मीणा जनजाति के बाद जनसंख्या में भीलों का स्थान है। भीलों
के बारे में मान्यता है कि आर्यों ने जब यहां के मूल निवासियों पर आक्रमण किया तब जिन
लोगों ने आर्यों की अधीनता स्वीकार की वो दस्यु या शुद्र कहलाए तथा जो लोग आर्यों के
सामने टिक नहीं पाए और जंगलों में चले गए वे आदिवासी कहलाए। भील जनजाति भी उन्ही मे
से एक थी । कर्नल जेम्स टॉड भीलों को वनपुत्र कहते हैं। भीलों का लिखित रूप में सर्वप्रथम
उल्लेख महाकाव्यों में मिलता है। मसलन रामायण में राम ने शबरी के जूठे बेर खाए थे।
शबरी को भील जनजाति का माना गया हैं। इसी प्रकार महाभारत में एकलव्य का उल्लेख मिलता
है,जिसे निम्न जाति का होने के कारण द्रोणाचार्य ने धनुर्विद्या सिखाने से मना कर दिया
था। भील जनजाति भारत में गुजरात, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान इत्यादि राज्यों
में पाई जाती हैं। राजस्थान में मुख्य रूप से यह जनजाति उदयपुर,डूंगरपुर, बांसवाड़ा,सिरोही,भीलवाड़ा
तथा चित्तौड़गढ़ में पाई जाती है। स्वभाव से भील स्वतंत्र प्रकृति के होते है।अपने स्वामी
के प्रति वफादारी इनका मुख्य गुण है। ये अपनी
परंपराओं में किसी भी बाहरी शक्ति का हस्तक्षेप स्वीकार नहीं करते।