• January to March 2024 Article ID: NSS8633 Impact Factor:7.67 Cite Score:864 Download: 40 DOI: https://doi.org/ View PDf

    जोबट विकासखण्ड में जनजातीय महिला कृषकों के विकास में सहकारी साख का योगदान (जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक मर्यादित, जोबट के विशेष में)

      डॉ. हेमता डुडवे
        सहायक प्राध्यापक (अर्थशास्त्र) क्रांतिकारी शहीद छीतुसिंह किराड़ शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय,अलीराजपुर (म.प्र.)
  • प्रस्तावना- आज हम 21 वीं सदी में प्रवेश कर चुके हैं, इसके बावजूद तथा महिलाओं की भागीदार के बिना देश व समाज की सफलता असंभव मानने के बावजूद जब महिला कृषक की समस्याओं की बात आती है तो आज भी वहीं वस्तु स्थिति देखने को मिलती है। जो आज से कई दशक पूर्व देखने को मिलती थीं संख्या में बढ़ते के बावजूद भी यदि सफलता के दृष्टिकोण से देखा जाये तो सफल कृषक के रूप में पुरूषों की तुलना में महिलाओं का अनुपात वहीं है जो कई वर्षों पूर्व था। यही वजह है कि महिलाओं के आर्थिक उत्थान हेतु प्रस्तुत की गई योजनाओं का संचालन हो रहा है, परन्तु महिलाओं इन योजनाओं का पूरा लाभ नहीं ले पा रही है।

        इन सबके बावजूद कुछ संतोषजनक बातें हुई है। स्वतंत्रता के बाद देश में महिलाओं के सामाजिक, आर्थिक दर्जें में सुधार लाने के लिये सरकार की ओर से कई सकारात्मक और समन्वित प्रयास किये गये हैं। पहली पंचवर्षीय योजना से ही विकास प्रक्रिया में महिलाओं को समानता का दर्जा दिलाने के लक्ष्य पर विशेष रूप से ध्यान केन्द्रीय किया जाता रहा है। इस संदर्भ में जहाँ पहली चार योजनाओं में महिलाओं के कल्याण की विभिन्न गतिविधियों और उनकी शिक्षा को उच्च प्राथमिकता देने पर जोर दिया गया है, वहीं पाँचवी से आठवीं योजनाओं में नीतिकारों के दृष्टिकोण में कुछ बदलाव दिखाई देता है। इनमें महिलाओं के कल्याण की बजाय उनके समग्र विकास का लक्ष्य निर्धारित करते हुए उनके स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार पर विशेष रूप से जोर दिया गया है। इनके बाद की अब तक की योजनाओं में महिला सशक्तिकरण एवं महिला जैसे विकसित क्षेत्रों की खोज करके इन्हें बढ़ावा देने का लक्ष्य रखा गया। ग्रामीण क्षेत्रों में  कृषि साख की आवश्यकता की पूर्ति दो साधनों से करता है। पहला साधन जिससे वे साख पूर्ति करते है- साहूकारों, देशी बैंकर्स। दूसरा साधन वह है जिसमें बैंक एवं सहकारी समितियाँ शामिल है। शासन द्वारा स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद ग्रामीण क्षेत्रों में साख संबंधी व्यवस्था के लिये समय-समय पर संस्थागत व्यवस्था के प्रयास किये गये है।