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April to June 2024 Article ID: NSS8641 Impact Factor:8.05 Cite Score:4763 Download: 96 DOI: https://doi.org/ View PDf
राजस्थान की ठीकरी कला का ऐतिहासिक अध्ययन एवं संरक्षण
खुशबु झाला
छात्रा (इतिहास) मोहनलाल सुखाडिया विश्वविद्यालय, उदयपुर (राज.)
शोध सारांश- उक्त लेख में मुगलों के संरक्षण एवं उसके बाद राजस्थान के राजपूत राजघरानों द्वारा संरक्षित ठीकरी कला के “ऐतिहासिक अध्ययन” एवं उसके “संरक्षण की आवश्यकताओं” पर विचार करने का प्रयास किया गया है। राजस्थान अपने इतिहास के साथ अपनी अलग-अलग कलाओं के इतिहास हेतु भी प्रसिद्ध है। इसी में से एक है “राजस्थान के मेवाड़ की ठीकरी कला”। जिसमें “शीशे की पच्चीकारी” अर्थात पत्थर में कांच के टुकड़ों की जडाई का कार्य किया जाता है। मेवाड़ रियासत की राजधानी उदयपुर क्षेत्र में “हस्तशिल्पयों” द्वारा आज भी 400 वर्षों पुरानी राजा महाराजाओं के समय से चली आ रही ठीकरी कला को संरक्षित किया गया है। उक्त कला की कलाकारी राजस्थान के राजपूत राजघरानों के महलों, दुर्गों व मंदिरों में देखी जा सकती है। ठीकरी कला राजस्थान के प्रमुख हस्तशिल्प में से एक है। इसके कलाकारों को सरकारी एवं गैर सरकारी संगठनों के समर्थन व संरक्षण की आवश्यकता है। वर्तमान में विदेशी पर्यटको द्वारा महलों व दुर्गो में ठीकरी कला के अप्रतिम कार्य को देख उसकी और आकर्षण एवं इस मनमोहक दृश्य को अपने संग विदेश ले जाने की चाह ने पुनः ठीकरी कलाकारों हेतु रोजगार की संभावनाओं को बढाया है।ठीकरी कला के छोटे नमूनों के रूप में साथ ले जाने से विदेश में परंपरागत ऐतिहासिक भारतीय हस्तशिल्प का प्रचार भी हो रहा है।
शब्द कुंजी- संरक्षण, ठीकरी, हस्तशिल्प, आकर्षण, परंपरागत।