• April to June 2024 Article ID: NSS8650 Impact Factor:8.05 Cite Score:153302 Download: 553 DOI: https://doi.org/ View PDf

    केदारनाथ अग्रवाल के काव्य में प्रकृति-चित्रण

      डॉ. ज्योति सिंह
        प्राध्यापक (हिंदी) शासकीय कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय, रीवा (म.प्र.)
      शिवऔतार
        शोधार्थी (हिंदी) अवधेश प्रताप सिंहविश्वविद्यालय, रीवा (म.प्र.)
  • प्रस्तावना- केदारनाथ अग्रवाल के काव्य में प्रकृति चित्रण इस शोध पत्र का वण्र्य विषय है। इसकी शोध परक विवेचना करने के पूर्व इसके सार रूप पर संक्षिप्त प्रकाश डालना उचित प्रतीत होता है।  केदारनाथ अग्रवाल के काव्य में प्रकृति चित्रण की यथार्थ परक झांकी देखी जा सकती है। इस शोध लेख में  केदारनाथ अग्रवाल के काव्य में प्रकृति चित्रणकी शोधात्मक विवेचना की गई है। केदारनाथ अग्रवाल प्रगतिशील काव्य-भवन के सुस्पष्ट स्तम्भ है। केदार की प्रगतिशीलता अन्यों की प्रगतिशीलता से भिन्न है। उनका अद्भुत प्रकृति-चित्रण उन्हे अन्यों से अलग खडा कर देता है। प्रकृति के चित्रांकन में कवि है जो मिलकर रंगारंग हो गये हैं। वास्तव में नियंता की इस सुन्दर सृष्टि में प्रकृति मानव की अमर सहचरी रही है। प्रकृति की गोद में ही पलकर मानव संसार के सौंदर्य का संदर्शन करता है। आदि ग्रन्थ वैदिक साहित्य में प्राप्त प्राकृतिक तत्वों के अत्यधिक वर्णन से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि प्रारम्भ से ही प्रकृति से कितना अटूट अनुराग रहा है। आदिकाल से ही प्रकृति ने मानव जीवन को अनेक रूपों में प्रभावित किया है। मानव का अन्तर और वाह्य प्राकृतिक रूप सौंदर्य से अभिभूत रहा है। प्रकृति के संवेदनशील नाना रूपात्मक व गतिशील रूप को देखकर कभी मानव मन विस्मय से तो कभी जिज्ञासा की भावना से भर उठा है। कहने का आशय यह है कि प्रकृति ने आदिकाल से आज तक मानवीय चेतना और साहित्य को अत्यधिक प्रभावित किया है। दूसरों से कुछ अलग हटकर उनके द्वारा उपस्थित किया गया प्रकृति का मनहर सदृश्य, किस रसज्ञ के मन को मुग्ध करनें में समर्थ नही होगा प्रकृति चित्रण के इसी वैशिष्ट्य से अभिभूत होकर मेरे मन में ’’केदार काव्य में प्रकृति-चित्रण शोध-पत्र लिखने की प्रेरणा जगी।