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April to June 2024 Article ID: NSS8669 Impact Factor:8.05 Cite Score:2889 Download: 74 DOI: https://doi.org/ View PDf
आधुनिक समाज में पुस्तकालयों एवं सूचना केन्द्रों की भूमिकाः एक अध्ययन
डॉ. अजीत कुमार साहू
शासकीय नेहरू स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बुढार, जिला शहडोल (म.प्र.)शशि प्रभा साहू
शासकीय नेहरू स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बुढार, जिला शहडोल (म.प्र.)
शोध सारांश- आधुनिक समाज की अनेक आवश्यकताएँ हैं- जैसे शिक्षा, अनुसंधान,
सांस्कृतिक विकास, आध्यात्मिक एवं वैचारिक क्रियाकलाप, क्रीड़ा एवं मनोरंजन, आदि। इन
आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए समाज ने अनेक संस्थाओं की स्थापना की। इनमें पुस्तकालय
का स्थान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। अन्य संस्थाएँ एक या दो प्रकार की आवश्यकताओं की
पूर्ति करती हैं लेकिन पुस्तकालय सभी प्रकार की आवश्यकताओं की समान रूप से पूर्ति करता
है समाज की शैक्षणिक एवं अनुसंधानपरक गतिविधियों के प्रोत्साहन, सांस्कृतिक उन्नयन,
सूचना के प्रचार-प्रसार, आध्यात्मिक और सैद्धान्तिक आस्थाओं की पूर्ति, मानवीय मूल्यों
की स्थापना और मनोरंजनात्मक कार्यों के आयोजन इत्यादि में पुस्तकालय की भूमिका अत्यंत
महत्त्वपूर्ण होती है।
सभी कालों में समस्त मानवीय क्रियाकलापों के आयोजन एवं
उनकी सपफलता में ज्ञान और सूचना पर्याप्त सहायक रहे हैं। लेकिन बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध
की अवधि में सूचना और ज्ञान विकास के सशक्त साधन बन गए हैं और समस्त गतिविधियों के
केन्द्र बन गए हैं। सूचना प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग के कारण सूचना का संग्रहण, प्रक्रियाकरण
और व्यवस्थापन, अभिगम तथा सुलभता भौगोलिक दूरियों के बावजूद भी सरल हो गए हैं और इन
कार्यों को तीव्रता एवं सटीकता के साथ संपन्न किया जा रहा है । आज सूचना तथा ज्ञान
को मूल संसाध्न माना गया है और आधुनिक समाज को ‘सूचना समाज’
की संज्ञा दी गई है।
सूचना और ज्ञान की अनेक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्रयुक्त
संस्थागत पद्धतियाँ एवं व्यवस्थाएँ पूर्ण रूप से परिवर्तित हो गई हैं। ज्ञान और सूचना
की आवश्यकता की पूर्ति करने वाली अनेक संस्थाओं में पुस्तकालयों का अत्यंत महत्त्वपूर्ण
स्थान है ।