• April to June 2024 Article ID: NSS8670 Impact Factor:8.05 Cite Score:707 Download: 36 DOI: https://doi.org/ View PDf

    जनजातीय समाज के लोकगीतों में सांस्कृतिक अभिव्यक्ति का अध्ययन (शहडोल संभाग के विशेष संदर्भ में)

      अमित सिंह भदौरिया
        शोधार्थी (समाजशास्त्र) अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय, रीवा (म.प्र.)
  • प्रस्तावना - मनुष्य जन्म से पशु प्रवृत्ति का होता है। संस्कृति उसे सामाजीकृत प्राणी में परिवर्तित करती है। साथ ही संस्कृति समाज को भी प्रभावित करती है। ‘संस्कृति शब्द का उद्गम संस्कार शब्द से है। ‘संस्कारका अर्थ उस क्रिया से है जिसमें मनुष्य के दोष दूर होते हैं और वह गुणकारी बनता है। दूसरे शब्दों में कहें तो संस्कृति वह शिक्षा है जिससे मनुष्य के जीवन में सुधार आता है। किसी देश या जाति की संस्कृति का अर्थ उस देश या जाति की वे पुरानी आदतें, प्रथाएं, रहन-सहन, खान-पान, आचार-विचार आदि से है जो देश या जाति के सदस्यों का चरित्र निर्माण करते हैं या उस निर्माण में प्रभावशाली होते हैं। संस्कृति को परिभाषित करते हुए ‘मैकाइवर एवं पेज लिखते हैं कि - ‘संस्कृति हमारे दैनिक व्यवहार में कला, साहित्य, धर्म, मनोरंजन और आनन्द में पाये जाने वाले रहन-सहन और विचार के तरीकों में हमारी प्रकृति की अभिव्यक्ति है।