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April to June 2024 Article ID: NSS8678 Impact Factor:8.05 Cite Score:3680 Download: 84 DOI: https://doi.org/ View PDf
भारतीय नारी की दशा और दिशा
बद्रीलाल डाबी
शोधार्थी (हिन्दी) विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन (म.प्र.)डॉ. गुलाबसिंह डावर
शोध निर्देशक, शा. विक्रम महाविद्यालय, खाचरोद, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन (म.प्र.)डॉ. शैलेन्द्र कुमार शर्मा
विभागाध्यक्ष, हिन्दी अध्ययनशाला, सह निर्देशक (हिन्दी) विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन (म.प्र.)
प्रस्तावना- समाज ऐसे व्यक्तियों का
समूह, जिन्होंने व्यक्तिगत स्वार्थों की सार्वजनिक रक्षा के लिए, अपने विषम आचरणों
में समझौता उत्पन्न करने वाले कुछ नियमों से शासित होने का समझौता कर लिया है। मनुष्य
को समूह बनाकर रहने की प्रेरणा-पशु जगत के समान प्रकृति से मिली है, इसमें संदेह नहीं,
परन्तु उसका क्रमिक विकास विवेक पर आश्रित है। मानसिक विकास के साथ-साथ उसमें जिस नैतिकता
की उत्पत्ति और वृद्धि हुई उसने पशु जगत से सर्वथा भिन्न कर दिया। मनुष्य समाज समूह
में न रहकर वह धीरे-धीरे ऐसी संस्था में परिवर्तित हो गया जिसका ध्येय सिर्फ लौकिक
सुविधाएँ पाना है।