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July to September 2024 Article ID: NSS8707 Impact Factor:8.05 Cite Score:1758 Download: 58 DOI: https://doi.org/ View PDf
भगवतधाम् शिवरीनारारायण
डॉ. रामरतन साहू
सह-प्राध्यापक (इतिहास) सामाजिक विज्ञान विभाग, डॉ. सी.व्ही. रमन विश्वविद्यालय करगीरोड कोटा, बिलासपुर (छ.ग.)वर्षा सूर्यवंशी
शोधार्थी (इतिहास) डॉ. सी.व्ही. रमन विश्वविद्यालय करगीरोड कोटा, बिलासपुर (छ.ग.)
शोध सारांश- छत्तीसगढ़ के इतिहास में शिवरीनारायण एक ऐसा परिचय है जो विलुप्त होती जा रही हमारी संास्कृतिक पारम्परिक, धार्मिक, सामाजिक, आध्यात्मिक चेतना को पुनर्जीवित करता है। प्रमाण हैं कि यह प्रागैतिहासिक सभ्यता के अवशेष अंचल और आसपास के महानदी तट के क्षेत्रों से प्राप्त हुए हैं। यहां प्रागैतिहासिक शैलचित्रों की उपस्थिति इसका ठोस प्रमाण है। महानदी के तटवर्ती ग्राम्यांचलों के भित्ति चित्रांकन की लोक परम्परा भी इतिहास के रहस्यों को उजागर करते हैं। यहाॅ बिरतिया कहे जाने वाले निषाद-केंवट, धीवर, मछुवारे और शबर जाति के भाट भी बहुतायत में रहते हैं जो यहाॅ की लोक-कलाकृतियों के ज्ञाता है। वे स्वंय को शबरी का वंशज मानते हैं।
शब्द कुंजी- प्रागैतिहासिक, संस्कारधानी, चित्रोत्पल, शिवरीनारायणग्राम।