• July to September 2024 Article ID: NSS8708 Impact Factor:8.05 Cite Score:1094 Download: 45 DOI: https://doi.org/ View PDf

    किन्नरों की दयनीय दशा

      डॉ. डोमन प्रसाद चन्द्रवंशी
        सहायक प्राध्यापक (हिन्दी) शास.जे.एम.पी. महाविद्यालय तखतपुर, जिला-बिलासपुर (छ.ग.)
  • शोध सारांश-  किन्नर समाज मानव समाज की उत्पत्ति का अपवाद है। पुरूषों एवं स्त्रियों के बीच की स्थिति में निर्मित यह प्राणी मात्र है। इनका अपना अलग संसार है जो इनके द्वारा समाज की उपेक्षा एवं अपनों के तिरस्कार स्वरूप निर्मित एक अलग दुनिया है। ये अपने को अपनों से अलग नहीं करते अपितु अपने ही इन्हे तिरस्कृत कर घर से ही निकाल देते है। फलत ये किन्नर समाज द्वारा निर्मित प्रथम परम्परा में जाना ही समीचीन समझते है। अपनों का व्यवहार एवं समाज की भूमिका ने इनकी दशा और दिशा का दुर्गत किया है।

        महेन्द्र भीष्म उपन्यास ‘किन्नर कथा‘ में लिखते है कि ‘‘लिंगोच्छेदन कर बनाए गए हिजड़ों की ‘छिबरा‘और नकली हिजड़ा बने मर्दो को ‘अबुआ‘ कहते है ...... हिजड़ों की चार शाखाएॅ होती है-बुचरा नीलिमा, मनुसा और हंसा। बुचरा जन्मजांत हिजड़ा होते हैं, नीलिमा स्वयं बने, मनसा स्वेच्छा से शामिल तथा हंसा शारीरिक कमी के कारण बने हिजडे़ है।‘