• July to September 2024 Article ID: NSS8713 Impact Factor:8.05 Cite Score:1597 Download: 55 DOI: https://doi.org/ View PDf

    स्वामी विवेकानंद के राष्ट्रवादी, दार्शनिक विचार और वर्तमान में प्रासंगिकता

      डॉ. साहेबराव झरबड़े
        सहायक प्राध्यापक (इतिहास) शासकीय महाविद्यालय, घोड़ाडोंगरी, जिला बैतूल (म.प्र.)
  • शोध सारांश-  वर्तमान समय को देखते हुए लगता है कि अन्य किसी भी विषय में कितना ही लिखा जाये, कितना ही चिंतन क्यों न हो ? लेकिन भारतीय सनातन मूल्यों को उनके पुरोधा के द्वारा किये गए प्रयास को अगर उजागर न किया जाये तो बाकी सब भौतिकी प्रगति का चिंतन और विकास निरूपयोगी है। वर्तमान समय में राष्ट्र की आध्यात्मिक प्रगति की ओर प्रकाश डालें तो देखते हैं कि भारतीय युवा वर्ग कितना भौतिकवादी एवं पश्चिम के भटकाववादी संस्कृति की ओर अग्रसर हो रहा है, जिसकी परतें खोलने का प्रयास है। स्वामी विवेकानन्द के राष्ट्रवादी दार्शनिक विचारों की कालजयी व्यापकता ने वास्तव में भारतीय युवाओं को भटकने से रोका है, इसमें स्कूल शिक्षा विभाग एवं उच्च शिक्षा विभाग की महती भूमिका है, जिसके माध्यम से विद्यार्थियों के पाठ्यक्रम में स्वामीजी के साहित्य को अध्ययन हेतु सम्मिलित किया गया है।

        महाविद्यालयों में छात्रों के कैरियर एवं आध्यात्मिक, नैतिक उन्नति हेतु स्वामी विवेकानन्द कैरियर मार्गदर्शन प्रकोष्ठ का गठन किया गया है, जिसके माध्यम से विद्यार्थियों के भौतिक लक्ष्यों के साथ-साथ आध्यात्मिक उन्नति के प्रयास भी निहित हैं। इसके अतिरिक्त खेल गतिविधियों के साथ-साथ राष्ट्रीय सेवा योजना के गठन एवं उसके अन्तर्गत चलाई जाने वाली गतिविधियां स्वामी विवेकानन्द के जीवन दर्शन एवं लक्ष्य से जुड़ी है, जिसमें शिविर एवं समय-समय पर कार्यशाला एवं व्याख्यानमाला के माध्यम से राष्ट्रसेवा की शिक्षा प्रदान की जाती है और यही भारतीय वेदान्त का सार है, क्योंकि पश्चिमी सभ्यता के अन्धानुकरण से भारतीय युवाओं की बहुसंख्यक आबादी अपने जीवनशक्ति को तबाह करने में लगी है, जिसमें स्वामीजी के आदर्शों के साथ-साथ वर्तमान के राष्ट्रवादी संतों द्वारा भी प्रयास किया जा रहा है।