• July to September 2024 Article ID: NSS8727 Impact Factor:8.05 Cite Score:4340 Download: 92 DOI: https://doi.org/ View PDf

    राजस्थान में जलग्रहण प्रबंधन

      संजय सिंह गुर्जर
        शोधार्थी, कोटा विश्वविद्यालय, कोटा (राज.)
      डॉ. एल. सी. अग्रवाल
        प्रोफेसर (भूगोल) राजकीय कला महाविद्यालय, कोटा एवं शोध निर्देशक, कोटा विश्वविद्यालय, कोटा (राज.)
  • शोध सारांश-राजस्थान राज्यभारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 10.4% हिस्सा घेरता है, जबकि यहाँ भारत की लगभग 5.66%से अधिक आबादी निवास करती है। दुर्लभ भूमि, जल और जैविक संसाधनों पर समाज की अभूतपूर्व जनसंख्या दबाव और मांग तथा इन संसाधनों का बढ़ता क्षरण हमारे पारिस्थितिकी तंत्र और समग्र रूप से पर्यावरण की स्थिरता और लचीलेपन को प्रभावित कर रहा है। इसलिए, राजस्थान में उत्पादक कृषि भूमि निरंतर क्षरण की अलग-अलग डिग्री की प्रक्रिया में है और तेजी से बंजर भूमि में बदल रही है। इस पारिस्थितिक असंतुलन को ठीक करने के लिएगैर-वन बंजर भूमि का विकास करना आवश्यक है। उपलब्ध भूमि संसाधनों की पूरी क्षमता का दोहन करने और इसके आगे क्षरण को रोकने के लिए बंजर भूमि का विकास बहुत महत्वपूर्ण है। क्षरित भूमि, जल और इसके प्रबंधन की समस्या जटिल और बहुआयामी है तथा इसके विकास का उद्देश्य जलग्रहण विकास और प्रबंधन में मानव संसाधन का विकास करना, सतत विकास के महत्व के बारे में जागरूकता पैदा करना और जलग्रहण विकास में कार्यरत मौजूदा कार्यबल का रखरखाव करना तथा जलग्रहण प्रबंधन दृष्टिकोण के आधार पर विकास में काम करने के लिए ग्रामीण युवाओं में कौशल विकसित करना और प्राकृतिक संसाधनों का सतत विकास करना है।

    शब्द कुंजी- जलग्रहण प्रबंधन, भूमि संसाधन।