• July to September 2024 Article ID: NSS8764 Impact Factor:8.05 Cite Score:20308 Download: 200 DOI: https://doi.org/ View PDf

    अमृतलाल नागर का नारी विषयक दृष्टिकोण

      शैलेश निषाद
        शोधार्थी, हिंदी अध्ययन शाला, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन (म.प्र.)
      प्रो. शैलेन्द्र कुमार शर्मा
        विभागध्यक्ष, हिंदी अध्ययन शाला, विक्रम विश्वविद्यलय, उज्जैन (म.प्र.)

प्रस्तावना- प्राचीन काल से हमारे समाज में नारियों की स्थिति अत्यंत दयनीय रही है । नारियों का शोषण अनादिकाल से चला आ रहा है। साथ ही साथ पुरुष की प्रधानता सर्वत्र व्याप्त थी। पुरुष और स्त्री समाज निर्माण के दो पूरक तत्व थे। प्राचीन काल में ऋषियों के काल से लेकर स्त्री जाति, पुरुष को देवतुल्य मानती है, और एक शब्द में कहा जाए तो स्त्री – पुरुष का गुलाम बनकर अपना जीवन व्यतीत करती थी।  पुरुष का सर उसकी कमाई पर आश्रित होकर जीवन निर्वाण करने वाली स्त्री के सामने ऊंचा रहता है। इसके अलावा स्त्री की अपेक्षा पुरूष का शारीरिक बल भी ज्यादा होने के कारण उसका मान सदैव बढ़ता रहा है। इन कारणों से नारी के प्रति पुरुष का अत्याचार प्राचीन काल से देखने को मिलता है ।