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July to September 2024 Article ID: NSS8791 Impact Factor:8.05 Cite Score:9 Download: 2 DOI: https://doi.org/ View PDf
अभिराज राजेन्द्र मिश्र के आधुनिक काव्य में सामाजिक मूल्यों पर चिन्तन
श्रीमती राजश्री जोशी
शोध छात्र, संस्कृत अध्ययनशाला, सुमन मानविकी भवन, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन (म.प्र.)
प्रस्तावना - विश्वभर की समस्त प्राचीन भाषाओं में संस्कृत का सर्वप्रथम और उच्च स्थान है। भारतीय संस्कृति का पूर्ण ज्ञान प्राप्त करना हो तो संस्कृत का अध्ययन आवश्यक है। अनेक प्राचीन एवं अर्वाचीन भाषाओं की यह जननी है। आज भी भारत की समस्त भाषाएँ इसी वात्सलमयी जननी के स्तन्यामृत से पुष्ट हो रही है। भारतीय भाषाओं को जोड़नेवाली कड़ी कोई है तो वह संस्कृत ही है।
भारत के सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, धार्मिक, आध्यात्मिक, दार्शनिक, सामाजिक और राजनैतिक जीवन एवं विकास के सोपानों की सम्पूर्ण व्याख्या संस्कृत वाङमय के माध्यम से आज उपलब्ध है। सदियों से इस भाषा और इसके वाङमय को भारत में सर्वाधिक प्रतिष्ठा प्राप्त हुई है। सहस्त्राब्दियों तक समग्र भारत को सांस्कृतिक एवं भावनात्मक एकता में आबद्ध रखने का महत्वपूर्ण कार्य इस भाषा में किया हैं । इसी कारण भारतीय मनीषियों ने इस भाषा को अमर भाषा या देववाणी के नाम से सम्मानित किया है।
भारतीय ज्ञान परम्परा और संस्कृति को समृद्धशाली
बनाए रखने में इस भाषा का योगदान महनीय है। यह भाषा प्राचीन होने के साथ अर्वाचीन,
प्रयोगशील एवं वैज्ञानिक भी है। संस्कृत भाषा की व्यापकता के कारण आज के परिप्रेक्ष्य
में इसका महत्व अत्यधिक बढ़ गया है।
साहित्य सृजन में भी प्राचीन साहित्यकारों की तरह ही अर्वाचीन साहित्यकार अपनी लेखनी से समाज को विपुल साहित्य प्रदान कर रहें हैं। इन्ही अर्वाचीन साहित्यकारों में इस शोध पत्र में अभिराज राजेन्द्र मिश्र के आधुनिक काव्य में सामाजिक मूल्यों पर चिंतन किया गया है। प्रस्तावना - संस्कृत विश्व की प्राचीनतम भाषाओं में परिगणित होती है। यह जितनी पुरानी है इसका साहित्य उतनी ही नवीनता लिये हुये है। रामायण, महाभारत एवं पुराण आदि सभी साहित्य इस संस्कृत भाषा में ही निबद्ध हैं। आज भी उत्कृष्ट साहित्य सृजन इस भाषा में सृजित किया जा रहा हैं।
अर्वाचिन कवि
भी आज की सामाजिक परिस्थितियों व वातावरण को संस्कृत भाषा में अत्यन्त सरलता व सहजता
से अपनी रचनाओं में स्थान देते हैं।संस्कृत साहित्य भारतीय समाज के उत्कृष्ट जीवनमूल्यों,
जीवनदर्शन, आध्यात्मिकता, सांस्कृतिक एवं सामाजिक परम्पराओं का प्रतिबिम्ब है। संस्कृत
साहित्य भारतीय संस्कृति का संवाहक भी है।