-
October to December 2024 Article ID: NSS8828 Impact Factor:8.05 Cite Score:136 Download: 14 DOI: https://doi.org/ View PDf
गोदान उपन्यास में कृषक-पीड़ा
जगदीश सिंह
सहायक आचार्य, राजकीय महाविद्यालय, खानपुर, झालावाड (राज.)
शोध सारांश- स्वातंत्र्योत्तर पूर्व हिन्दी उपन्यास की विकास यात्रा
में प्रेमचन्द का स्थान महत्त्वपूर्ण रहा है। साहित्य के व्यापक उद्देश्य में लोकमंगल
की कामना रहती है और साहित्य की विकास प्रक्रिया में मनुष्य का महत्त्व होता है। जिसके
अन्तर्गत समाज के ऊँचे-नीचे सभी वर्ग आ जाते हैं। मनुष्य चाहे किसी भी वर्ग या सम्प्रदाय
काहो उसके जीवन जीने की प्रक्रिया एक जैसी होती है। इसी प्रक्रिया से प्रेमचन्द भी
प्रभावित थे। प्रेमचन्द गाँधीवादी आदर्श जीवन प्रणाली तथा सत्य-अहिंसा के प्रबल समर्थक
होते हुए भारतीय संस्कृति के मूलभूत आधारों-त्याग, संयम, उदारता, आदर्श, सेवा, परोपकार
आदि जीवन-दर्शन के पे्ररक तत्त्वों में विश्वास करते थे। इन्हीं प्रेरक तत्त्वों का
पूर्ण विकास भारतीय कृषक में मानते हुए पे्रमचन्द ने 1936 ईं. में गोदान उपन्यास की
रचना की। गोदान उपन्यास प्रेमचन्द की परिपक्वजीवन-दृष्टि का परिणाम है। जो कृषक पीड़ा
बनकर उभरी है। ग्रामीण जीवन का ऐसा यथार्थ एवं प्रामाणिक चित्रण गोदान उपन्यास में
हुआ कि इसे सर्वत्र सराहना प्राप्त हुई है।