• October to December 2024 Article ID: NSS8830 Impact Factor:8.05 Cite Score:223 Download: 19 DOI: https://doi.org/ View PDf

    श्रीलाल शुक्ल के कथा साहित्य में क्लासिसिज्म एवं रोमांटिसिज्म का सामंजस्य

      रमेश वसुनिया
        शोधार्थी (हिन्दी) विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन (म.प्र.)
      डॉ. सी.एल.शर्मा
        प्राध्यापक (हिंदी) प्रधानमंत्री कॉलेज ऑफ़ एक्सीलेंस शासकीय कला एवं विज्ञान महाविद्यालय, रतलाम (म.प्र.)
      डॉ. जगदीशचंद्र शर्मा
        आचार्य एवं सह-निर्देशक (हिंदी) विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन (म.प्र.)
  • प्रस्तावना- आधुनिक हिंदी के साहित्यिक क्षेत्र में श्रीलाल शुक्ल एक प्रतिष्ठित व्यक्तित्व हैं, जो अपनी कुशाग्र एवं तीव्र बुद्धि से व्यंग्यात्मक शैली और सामाजिक मुद्दों को प्रमुखता से उठाकर उस पर आलोचना के लिए प्रसिद्ध हैं। उनकी रचनाएँ मुख्य रूप से समकालीन मुद्दों से जुड़ी होती हैं लेकिन उनके साहित्य में एक अद्भुत क्लासिसिज़्म (शास्त्रियतावाद) एवं रोमांटिसिज्म (स्वच्छंदतावाद) का प्रवाह भी देखा जा सकता है। शुक्ल अपने कथानकों में शास्त्रीय परंपराओं, आदर्शों और रूपों के तत्वों को कुशलता से पिरोते हैं, जो प्राचीन और आधुनिक भारत की समस्याओं को एक साथ जोड़ते हैं। इस लेख में श्रीलाल शुक्ल की कहानियों में क्लासिसिज़्म और रोमांटिसिज्म के प्रयोग पर चर्चा कर यह विश्लेषित किया गया है कि किस प्रकार शास्त्रीय तत्व और स्वच्छंदतावाद उनकी सामाजिक टिप्पणियों और कथा संरचना में योगदान करते हैं। यद्यपि उनका लेखन आम तौर पर व्यंग्य, यथार्थवाद और सामाजिक टिप्पणी से जुड़ा हुआ है, लेकिन उनकी कहानियों में स्वच्छंदतावाद के सूक्ष्म लेकिन महत्वपूर्ण निशानों को नजरअंदाज करना सहीं नहीं होगा। कठोर यथार्थवाद के साथ रोमांटिक तत्वों का उनका सम्मिश्रण सामाजिक संरचनाओं की उनकी आलोचना में गहराई जोड़ता है और स्वतंत्रता बाद के भारत में ग्रामीण और राजनीतिक जीवन के उनके कठोर चित्रण के लिए एक सूक्ष्म सुंदरता लाता है। शुक्ल की कहानियों में क्लासिसिज्म को समझने से पहले यह जानना ज़रूरी है कि साहित्य में क्लासिसिज़्म का क्या अर्थ है। क्लासिसिज़्म जो मुख्य रूप से ग्रीक-रोमन परंपरा से उत्पन्न हुआ है, जो सौंदर्य, संतुलन, स्पष्टता, और परंपरा के सम्मान पर जोर देता है। यह तर्कसंगतता, संयम, और व्यवस्था जैसे मूल्यों को प्रतिबिंबित करता है, जो कि व्यक्तिगत अनुभवों की अपेक्षा सार्वभौमिक सत्य को प्राथमिकता देता है। भारतीय साहित्यिक परंपरा में क्लासिसिज़्म संस्कृत काव्यशास्त्र से जुड़ा हुआ है, विशेष रूप से नाट्यशास्त्र और काव्य मीमांसा जैसे ग्रंथों में निर्धारित सिद्धांतों के माध्यम से ये सिद्धांत साहित्य में औचित्य, भावनात्मक संयम और सौंदर्यानुभूति की महत्ता को बढ़ावा देते हैं। जब हम भारतीय परिप्रेक्ष्य में शास्त्रीयतावाद पर विचार करते हैं तो पाते हैं कि संस्कृति और प्राचीन भारतीय साहित्य में इसका उज्ज्वलतम रूप दिखलाई पड़ता है। इनमें वैदिक ग्रंथ रामायण, महाभारत के अलावा, कालिदास, बाणभट्ट, भवभूति, जायसी, सूर, तुलसी, गालिब, रवीन्द्रनाथ, जयशंकर प्रसाद, निराला आदि प्रतिष्ठित साहित्यकारों की रचनाएँ सम्मिलित है जिन्होंने कि अपने लेखन कार्य द्वारा मां भारती के भंडार को भरने में कोई कमी नहीं छोड़ी है। ये अत्यंत ही प्रतिभासम्पन्न कवि हैं। इनकी शैली भव्य एवं उदात्त है तथा इनकी कृतियाँ विश्व साहित्य की अमर निधियाँ हैं। वैसे तो भारतीय साहित्य शास्त्रवादी पश्चिमी साहित्य से काफी पुराना है इसलिए दोनों की तुलना करना सही नहीं होगा। भारतीय साहित्य में शास्त्रवाद का आग्रह उस रूप में नहीं हुआ जिस रूप में यूनानी या लैटिन साहित्य में रहा, क्योंकि यह भारतवर्ष की गतिशील लोकोन्मुख परम्परा से सदैव प्रभावित रहा है, भारतीय साहित्य लोक और शास्त्र तथा बुद्धि और हृदय के बीच समन्वय से रचित साहित्य है जो जीवन और जगत की विविधतायुक्त छवियों से सुरक्षित है।