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October to December 2024 Article ID: NSS8832 Impact Factor:8.05 Cite Score:106 Download: 12 DOI: https://doi.org/ View PDf
जनजातीय महिलाएं : प्रजनन एवं शिशु स्वास्थ्य
डॉ. भूपेन्द्र मेघवाल
व्याख्याता, जे.आर. शर्मा स्नातकोत्तर महाविद्यालय, झाड़ोल(फ.), जिला उदयपुर (राज.)
प्रस्तावना- भारतीय संविधान के नीति
निर्देशक सिद्धान्तों में कहा गया कि राज्य अपने लोगों के जीवन स्तर को ऊँचा करने तथा
जन स्वास्थ्य के सुधार को अपने प्राथमिक कर्तव्य में मानेगा। विभिन्न अन्र्तराष्ट्रीय
संगठनों में यह प्रमाणित किया गया है कि स्वास्थ्य पर प्रत्येक प्राणी का अधिकार होना
चाहिए। क्योंकि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ आत्मा एवं मन निवास करता है। किसी भी समाज
की समृद्धि एवं विकास के लिए स्वास्थ्य स्तर का बेहतर होना आवश्यक है। जनजातीय समाज
में अशिक्षा, अज्ञानता एवं अन्धविश्वास के कारण महिलाओं के स्वास्थ्य देखरेख पर कोई
विशेष ध्यान नहीं दिया जाता है जबकि महिलाएँ किसी भी राष्ट्र की भावी पीढ़ी को जन्म
देती है। स्वास्थ्य व्यक्ति का मूलभूत अधिकार है लेकिन जब तक निर्णय निर्माण में प्रत्येक
स्तर पर पुरूष एवं महिला की समान सहभागिता न हो तब तक इसकी रक्षा असम्भव है। स्वतन्त्रता
के बाद आधुनिक चिकित्सा के विस्तार हेतु सरकार ने काफी प्रयास किय लेकिन अभी भी स्वास्थ्य
स्तर को उन्नत बनाने का लक्ष्य अधुरा है। आज भी स्वास्थ्य विभाग के लिए ग्रामीण एवं
जनजातीय क्षेत्रों में गर्भवती महिला की देखरेख, प्रसव पूर्व सेवा उपलब्ध कराना, सुरक्षित
प्रसव सम्पन्न कराना, कुपोषण, बाल मृत्युदर पर नियंत्रण, परिवार नियोजन के रूप में
नसबन्दी, गर्भ निरोधक दवाईयों को सुलभ कराना चुनौती बना हुआ है। जनजातीय क्षेत्रों
में अधिकांश गर्भवती महिलाए आयरन की कमी के कारण एनिमिया रोग से पीड़ित है। नवजात शिशुओं
में टिटनेस, खसरे से होने वाली मृत्यु, बच्चो में डिप्थीरिया, काली खाँसी, पोलियो,
तपेदिक आदि रोगों की प्रतिरक्षण टीके की सुविधा उपलब्ध होते हुए भी पूर्ण निराकरण नहीं
हो पाया है।