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October to December 2024 Article ID: NSS8857 Impact Factor:8.05 Cite Score:50 Download: 8 DOI: https://doi.org/ View PDf
जांजगीर का लोक महोत्सव मेला की प्रासंगिकता
डॉ. रामरतन साहू
सह. प्राध्यापक (इतिहास) डॉ. सी.वी. रमन विश्वविद्यालय, बिलासपुर (छ.ग.)दिनेश कुमार राठौर
शोधार्थी (इतिहास) डॉ. सी.वी. रमन विश्वविद्यालय, बिलासपुर (छ.ग.)
प्रस्तावना- हिन्दू धर्म में कई लोको का उल्लेख आता है। जिसमें
देव लोक, पाताललोक एवं पृथ्वीलोक आदि का वर्णन आता है। यह विचारणीय प्रश्न है कि लोक
क्या है। वस्तुतः लोक उसके रहवासियों के चरित्र को चरितार्थ करने वाला एक चिन्हित क्षेत्र
होता है। उसमें रहने वाले अगर परम्परा, संस्कृति एवं समाजशास्त्रीय विवेचनाओं की परिधि
में आबदूध हो तो उसे भी हम लोक कह सकते है। परम्परा और संस्कृति लोक में सन्निहित मूल
तत्व है। लोक अपनी संस्कृति परम्परा और आसपास की प्रकृति से आंतरिक संवेदनाओं से जुडकर
संपूर्ण सृष्टि के लिये मंगलकामना करते हुये अपनी मनोभावनाओं को सार्वजनिक रूप से जब
व्यक्त करते है तब हम असे उत्सव या वृहद्् रूप में महोत्सव कह सकते है। जांजगरी-चांपा
की धरती को यहां के मनुपुत्रों ने अपने कौशल और श्रम से बहुगुणित किया हैं। नैसर्गिक
विविधता के इस क्षेत्र में एक ओर सदानिरा हसदेव-महादनी- मांद और उसकी सहायक जधराएं
है जलधाराएं वही पहाड़ी उपत्यका और वनश्री भी
यहां पर्याप्त है। इस क्षेत्र की मुख्यतः उपजाउ मैदानी भूमि ने प्राचीन काल से ही मानव
सभ्यता और बसाहट को अपनी ओर आकृष्ट किया है, इसलिए यहां जन-समुदाय का घनत्व अभी भी
हैं। जांजगीर-चांपा जिले में उपजाउ मैदन और गढ़ के साथ खाईयां मे तथा विशाल तालाब मानव
उद्यम के प्रमाण है तो आधुनिक बांगो-हसदेव की सिचाई सुविधा ने नहर की लकीरों से मानों
किस्मत की रेखा खीच दी हैं। यहां की कृषक संस्कृति की उत्सवधर्मिता के दर्शन हाते है
रंगबिरंगे मेलो में।