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October to December 2024 Article ID: NSS8866 Impact Factor:8.05 Cite Score:6465 Download: 112 DOI: https://doi.org/ View PDf
भारतीय संस्कृति में मूल्यों का ह्रास
डॉ. सोनिका बघेल
सहायक प्राध्यापक (समाजशास्त्र) शासकीय आदर्श महाविद्यालय, हरदा (म.प्र.)
प्रस्तावना- भारतीय समाज में पारिवारिकता का ह्रास हो रहा है, आपसी रिश्तों की मर्यादायें टूट रही हैं। आधुनिकता का नाम
लेकर संबंधों में फूहड़ता पनप रही है। समाजों की नकारात्मक मानसिकता ने पारिवारिक संबंधों,
प्रकृति, पर्यावरण एवं मानवीय संवेदनाओं का क्षरण किया है। हवा, पानी, वृक्ष, जीव एवं
सम्पूर्ण धरती इसका शिकार हो रहे हैं। पुरानी परम्पराओं ने इन सब में ईश्वर इस लिए
प्रतिस्थापित किया था क्योंकि इनमें जीवन पलता है। किन्तु वर्तमान में इन सब का दोहन
करके मनुष्य स्वयं को विखंडित एवं असुरक्षित कर रहा है।युवा पीढ़ी भटकाव के रास्ते पर
है। इसका मुख्य कारण पारिवारिक संस्कारों का आभाव एवं सामाजिक मूल्यों में बदलाव
प्रमुख है। दूर संचार तकनीक के विकास के साथ दुराचार एवं आप संस्कृतियाँ समाज में व्याप्त
हो चुकी हैं। युवाओं में भावनात्मक भटकन है। इसका दूसरा मुख्य कारण शिक्षा का अधूरापन
है। शिक्षा सिर्फ़ किताबों में सिमट कर रह गई है। नैतिक मूल्यों का समाज से पलायन जारी
है। परिवार एकल होने कारण अच्छे नैतिक शिक्षा के संस्थान नहीं बन पा रहे हैं। माता-पिता
स्वयं भ्रमित हैं उन्हें अपनी प्राथमिकताएँ ही नहीं पता सिर्फ़ पैसा कमा कर कोई भी अपनी संतान को योग्य नहीं बना सकता है।नैतिकता
की ढहती दीवारें यौवन को विनाश की और ले जा रही हैं। मर्यादाओं एवं वर्जनाओं को लाँघती
जवानी नष्ट हो रही है। आज युवा जिस रास्ते पर अग्रसर है उसमें स्वछन्दता तो है लेकिन
स्वतंत्रता नहीं है। आज के युवा का जीवन भ्रम और भ्रान्ति में कट रहा है। महानगरीय
संस्कृति ने युवाओं की वर्जनाओं को तोड़ दिया है। भड़कीले परिधान अंगप्रदर्शन करने वाले
कपड़े, कान में लगे इयर फोन, हाथों में महँगा मोबाइल और आँखों से ग़ायब होती शर्म ये
महामारी महानगरों से क़स्बों व गाँवों में फैल चुकी है।














