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January to March 2025 Article ID: NSS8998 Impact Factor:8.05 Cite Score:8938 Download: 132 DOI: https://doi.org/ View PDf
मध्य प्रदेश में पंचायती राज व्यवस्था का वित्तीय मूल्यांकन (छतरपुर जिले की चयनित पंचायतों के विशेष संदर्भ में)
डॉ. संगीता कुम्भारे
सहायक प्राध्यापक (वाणिज्य) शासकीय कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय, सागर (म.प्र.)
शोध सारांश- मध्यप्रदेश में पंचायती
राज व्यवस्था देश की विकेन्द्रीकृत नीति के अंतर्गत स्थापित हुई है। पंचायती राज के
रूप में यह विषय मध्यप्रदेश को पंचायती राज व्यवस्था और उसके वित्तीय प्रबंधन के विश्लेषण
पर केंद्रित है। छतरपुर जिले के कुल चयनित पंचायतों को उद्देश्य बना कर इसमें इन पंचयतो
के आर्थिक प्रबंधन, बजटरी व्यवस्था और वित्तीय स्रोतों का अध्ययन किया जाना प्रस्तावित
है। पंचायती राज का उद्देश्य ग्राम पंचायतों को स्वतंत्रता देना है। ताकि वे अपने आर्थिक
और सामाजिक जिम्मेदारियों को स्वतंत्रता पूर्वक कर सके। पंचायती राज व्यवस्था भारत
की स्थानीय स्वशासन की व्यवस्था है। जो ग्राम पंचायतों को अधिकार एवं जिम्मेदारियाँ
प्रदान करती है। इस विश्वास के तहत ग्राम पंचायतों को अपने क्षेत्र में विकास और प्रबंधन
सम्बन्धी निर्णय लेने का अधिकार दिया जाता है। मध्य प्रदेश में इस व्यवस्था की शुरुआत
भारत सरकार के 73 वें संविधान संशोधन के अनुसार हुई थी जिसमें ग्राम पंचायतों को अधिकार
और जिम्मेदारियों का वितरण था।
पंचायती राज व्यवस्था भारत में ग्रामीण विकास और स्थानीय स्वशासन का महत्वपूर्ण अंग है। 73वें संविधान संशोधन के बाद, यह व्यवस्था और सशक्त हुई है। मध्य प्रदेश में पंचायती राज व्यवस्था को प्रभावी बनाने के लिए कई कदम उठाए गए हैं। पंचायती राज का उद्देश्य जिलों. अंचलों और गांवों में स्थानीय स्वशासन का विकास करना है। भारत में पंचायती व्यवस्था केवल स्वतंत्रता के बाद की घटना नहीं है। वास्तव में, ग्रामीण भारत में प्रमुख राजनीतिक संस्था सदियों से ग्राम पंचायत रही है। प्राचीन भारत में, पंचायतें आमतौर पर कार्यकारी और न्यायिक शक्तियों वाली निर्वाचित परिषदें होती थीं। विदेशी प्रभुत्व, विशेष रूप से मुगल काल और ब्रिटिश काल के समय में प्राकृतिक, सामाजिक-आर्थिक परिवर्तनों ने ग्राम पंचायतों के महत्व को कम कर दिया था। हालाँकि, स्वतंत्रता-पूर्व काल में, पंचायतें गाँव के बाकी हिस्सों पर उच्च जातियों के प्रभुत्व के साधन थी, जिसने सामाजिक-आर्थिक स्थिति या जाति पदानुक्रम के आधार पर विभाजन को और बढ़ा दिया।
हालाँकि, संविधान के प्रारूपण के बाद स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद पंचायती राज प्रणाली के विकास को गति मिली। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 40 में कहा गया हैः ’’राज्य ग्राम पंचायतों को संगठित करने के लिए कदम उठाएगा और उन्हें ऐसी शक्तियाँ और अधिकार प्रदान करेगा जो उन्हें स्वशासन की इकाइयों के रूप में कार्य करने में सक्षम बनाने के लिए आवश्यक हों।‘’
शब्द कुंजी- ग्राम पंचायत, जनपद पंचायत,
जिला पंचायत, वित्तीय मूल्याकंन, बजट आय-व्यय लेखा परीक्षण निधियों का प्रबंधन, विकेन्द्रीकरण,
प्रशासनिक संस्चना।














