
-
January to March 2025 Article ID: NSS9040 Impact Factor:8.05 Cite Score:448 Download: 28 DOI: https://doi.org/ View PDf
इतिहास के आइने मे भारतीय ज्ञान प्रणाली
डॉ. खुमेश सिंह ठाकुर
सहायक प्राध्यापक (अर्थशास्त्र) सुभद्रा शर्मा शासकीय कन्या महाविद्यालय, गंजबासौदा, जिला- विदिशा (म.प्र.)डॉ. जी. एल. मालवीय
सहायक प्राध्यापक (वाणिज्य) सुभद्रा शर्मा शासकीय कन्या महाविद्यालय, गंजबासौदा, जिला- विदिशा (म.प्र.)
शोध सारांश- भारतीय ज्ञान प्रणाली का पुनरूद्धार और अनुकूलन राष्ट्र
की समद्ध बौद्धिक विरासत को संरक्षित करने के साथ-साथ इसे आधुनिक समाज की मांगों के
साथ संरेखित करने के लिए महत्वपूर्ण है। ऐतिहासिक रूप से भारत दार्शनिक विचारधाराओं
का अग्रणी रहा है जिसकी समद्ध परम्पराओं की व्यापता प्राचीन से लेकर समकालीन समय तक
है। इसमें वेद, उपनिषद, सांख्य, योग, मीमांसा और साथ ही जैन धर्म और बौद्ध धर्म शामिल
है जिसकी परिणिति भक्ति दार्शनिक पराम्परा और आधुनिक काल में स्वामी विवेकानन्द जैसे
आधुनिक विचारकों के योगदान में हुई है। इन शिक्षाओं के केन्द्र में मानव आत्म-सुधार
आत्म-खोज यात्रा के विभिन्न मार्ग और एक दैवीय संबंध की खोज का चिंतन निहित है। राष्ट्रीय
शिक्षा नीति 2020 ने एक व्यापक रूपरेखा प्रदान की है जो शैक्षिक पाठ्यक्रम में भारतीय
ज्ञान प्रणाली को शामिल करने को प्रोत्साहित करती है, जो सीखने के लिए एक समग्र और
समावेशी दृष्टिकोण को बढ़ावा देने में इसके महत्व पर प्रकाश डालती है। वर्तमान परिपेक्ष्य
में यह सर्वोपरि है कि भारतीय अपने अस्तित्व की प्राप्ति के लिए खुद को मन के उपनिवेशवाद
से मुक्त करे। इस उद्देश्य पूर्ति के लिए भारतीय ज्ञान पराम्परा का पालन करना महत्वपूर्ण
है जिसमें आत्म-ज्ञान के लिए सभी आवश्यक तत्व शामिल है और यह मानव जीवन और अनुभव के
हर पहलू का समाधान प्रदान करती है।














