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January to March 2025 Article ID: NSS9050 Impact Factor:8.05 Cite Score:301 Download: 22 DOI: https://doi.org/ View PDf
भारतीय संविधान में संशोधनों की आवश्यकता एवं प्रासंगिकता
डॉ. नियाज अहमद अन्सारी
सहा. प्राध्यापक (राजनीति विज्ञान एवं व्यक्तित्व विकास) शासकीय आदर्श महाविद्यालय, उमरिया (म.प्र.)राखी गुप्ता
शोधार्थी (राजनीति विज्ञान) देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इन्दौर (म.प्र.)
शोध सारांश- वर्ष 2024 में भारतीय संविधान
के लागू होने के 75 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्यि में 26 नवम्बर को संविधान की हीरक
जयंती को सालभर संविधान का अमृत महोत्स वके रूप में देशभर में मनाया जा रहा है । किसी
भी देश का संविधान एक प्रगतिशील एवं परिवर्तनशील महत्वपूर्ण ग्रंथ होता है। देश के
विकास के साथ-साथ संविधान का विकास होना भी जरूरी होता है, जो कि इसमें समयानुकूल संशोधन
करके सम्पन्न किया जाता है।। भारतीय संविधान एक सदी के बड़े ब्रिटिश शासनकाल में क्रमिक
रूप से विकसित हुआ है। ब्रिटिश संसद ने भी भारत के लिए अनेक अधिनियम बनाए। भारत में
संविधान संशोधन की प्रक्रिया अमेरिका एवं आस्ट्रेलिया की तुलना में कम कठोर है। अत:
अब भारतीय संविधान में संशोधनों कीआवश्यकता प्रक्रिया एवं प्रासंगिकता की विवेचना किया
जाने से इसकी प्रासंगिकता सामने लाना जरूरी
प्रतीत होता है ।
इसके तहत संविधान में संशोधन की आवश्यीकता एवं प्रक्रिया, महत्वपूर्ण संविधान संशोधनों एवं उनका प्रभाव, लोकतंत्र के विकास में संविधान संशोधनों का योगदान, विकसित भारत-2047 में संविधान की भूमिका, अत्यंधिक संशोधनों की आलोचना, भारत में संविधान के भविष्यो आदि बिन्दुओं में चर्चा प्रारंभ होना चाहिए ।अबतक भारत में संविधान लागू होने की मात्र 75 वर्षीय न्यून अवधि में ही संविधान में 106 संशोधन किए जा चुके हैं। भारत के समग्र विकास में इन संशोधनों का भी योगदान रहा है ।
अतः समय की मांग को ध्यान में रखकर संविधान में संशोधन करना तत्कालीन सरकार के लिए प्रासंगिक एवं अनिवार्य हो जाता है। यही कारण है कि संविधान में समय-समय पर लचीलापन अपनाते हुए कुछ प्रावधान जोड़े जाते है तो कुछ हटाए या परिवर्तित किए जाते हैं। इसलिए भारतीय संविधान में समयानुकूल नए राज्यों का गठन, अधिकारों पर उचित प्रतिबंध, मौलिक कर्तव्यों का विस्तार, कमजोर, शोषित वर्गो के लिए आरक्षण एवं अन्य प्रावधान संविधान संशोधनों के माध्यम से स्थापित किए जा सके हैं।ग्रेनविल ऑस्टिन जैसे संविधान समीक्षकों ने भारतीय संविधान को सामाजिक क्रांति का सशक्त माध्यम निरूपित किया है।
शब्द कुंजी-भारतीय संविधान, संविधान संशोधन,संवैधानिक विकास, लोक कल्यााण,विकसित भारत-2047 एवं लोकतांत्रिक मूल्य ।














