• January to March 2025 Article ID: NSS9068 Impact Factor:8.05 Cite Score:60 Download: 8 DOI: https://doi.org/ View PDf

    मध्य प्रदेश के आदिवासी समुदायों का सांस्कृतिक भूगोल और जीवन शैली: एक समीक्षात्मक अध्ययन

      अनबर खान
        सहायक प्राध्यापक एवं विभागाध्यक्ष (भूगोल) शासकीय शहीद केदारनाथ महाविद्यालय, मऊगंज (म.प्र.)

शोध सारांश- मध्य प्रदेश के आदिवासी समुदायों की सांस्कृतिक विशेषताएँ और जीवन शैली इस क्षेत्र के सामाजिक और सांस्कृतिक ताने-बाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इस शोध पत्र का उद्देश्य आदिवासी समुदायों के सांस्कृतिक भूगोल की गहरी समझ प्राप्त करना है, जिसमें उनकी सामाजिक संरचनाएँ, पारंपरिक रीति-रिवाज, खानपान, वस्त्र, कला, और उनका पर्यावरणीय संबंध समाहित हैं। आदिवासी समुदाय अपने पारंपरिक ज्ञान, पुरानी कृतियों और प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन के प्रति अपनी आस्था को जीवित रखते हैं, जो इनकी जीवन शैली का अभिन्न हिस्सा है।

मध्य प्रदेश में आदिवासी जीवन शैली को समझने के लिए, इस अध्ययन में विभिन्न आदिवासी जातियों के सांस्कृतिक और भौगोलिक पहलुओं का विश्लेषण किया गया है। उदाहरण के रूप में, गोंड आदिवासी अपने पारंपरिक कारीगरी और कृषि कार्यों में लगे होते हैं, जबकि भील आदिवासी सामूहिक शिकार और जंगलों से जुड़ी पारंपरिक विधियों का पालन करते हैं। इन समुदायों की सांस्कृतिक पहचान उनका सांगीतिक और नृत्य परंपरा, जैसे कि गोंडी नृत्य और भील वाद्ययंत्र, उनके सामूहिक जीवन का एक प्रमुख हिस्सा हैं।आदिवासी जीवन में प्रकृति और पर्यावरण का गहरा प्रभाव है। इन समुदायों का विश्वास है कि पृथ्वी, जल, और वन उनके जीवन के अभिन्न अंग हैं। यह जीवन शैली पारंपरिक कृषि पद्धतियों, जंगलों में सामूहिक शिकार, और प्राकृतिक उपचार पद्धतियों से जुड़ी है। इनकी धार्मिक आस्थाएँ भी प्रकृति से जुड़ी होती हैं, जहां प्रत्येक पहाड़ी, नदी, और वृक्ष के प्रति सम्मान व्यक्त किया जाता है।

हालांकि, आधुनिक विकास और बाहरी प्रभावों ने आदिवासी समाज की जीवन शैली में काफी बदलाव लाया है। सरकारी योजनाओं, शिक्षा के प्रसार और बाहरी व्यापारिक गतिविधियों के कारण इनके पारंपरिक ज्ञान और रहन-सहन में बदलाव आ रहा है। इन परिवर्तनों का असर आदिवासी समाज की सामाजिक संरचनाओं पर भी पड़ा है, जिससे उनकी पारंपरिक रीति-रिवाजों में अवरोध उत्पन्न हो सकता है।  

शोध के अंतर्गत यह निष्कर्ष भी निकला कि आदिवासी समुदायों के लिए सांस्कृतिक संवर्धन और पारंपरिक ज्ञान की रक्षा अत्यंत आवश्यक है। इसके लिए, सरकारी नीतियों और योजनाओं को उनके सांस्कृतिक अधिकारों के साथ संतुलित करना होगा। इस शोध का उद्देश्य आदिवासी समुदायों के जीवन की समृद्धि को बनाए रखते हुए उन्हें आधुनिकता और विकास की दिशा में समर्थ बनाना है।समाज की सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करना और उसे विकास की प्रक्रिया में सही तरीके से शामिल करना न केवल उनके जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाएगा, बल्कि हमारे समाज की विविधता और सांस्कृतिक धरोहर को भी सुदृढ़ करेगा।