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January to March 2025 Article ID: NSS9100 Impact Factor:8.05 Cite Score:96 Download: 11 DOI: https://doi.org/10.63574/nss.9100 View PDf
अनामिका के ‘तृन धरि ओट’ उपन्यास में पारिस्थितिक नारीवाद और सीता की नई व्याख्या
राजविन्द्र कौर
शोधार्थी, टांटिया विश्वविद्यालय, श्रीगंगानगर (राज.)डॉ. पूजा धमीजा
सह आचार्य (हिंदी) टांटिया विश्वविद्यालय, श्रीगंगानगर (राज.)
शोध सारांश- अनामिका द्वारा रचित ‘तृन धरि ओट’ उपन्यास पारंपरिक नारीवादी विमर्श को पारिस्थितिक दृष्टिकोण से जोड़ते हुए स्त्री और प्रकृति के पारस्परिक संबंधों को स्थापित करता है। इसमें सीता को केवल मिथकीय चरित्र के रूप में नहीं बल्कि एक बौद्धिक, संवेदनशील एवं तर्कशील स्त्री के रूप में प्रस्तुत किया गया है। सीता का व्यक्तित्व मातृत्व की पारंपरिक संकल्पना से परे जाकर समावेशी करुणा और सामाजिक दायित्वबोध से जुड़ता है। वह स्वयं की मुक्ति तक सीमित नहीं बल्कि प्रकृति, दलित-आदिवासी समुदायों और समस्त शोषित वर्गों की स्वतंत्रता में अपनी मुक्ति को देखती है। वे पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक न्याय को आपस में जोड़ते हुए एक समतामूलक समाज की संकल्पना प्रस्तुत करती हैं। यह उपन्यास स्त्री स्वायत्तता, पर्यावरणीय चेतना एवं सामाजिक समता के अंतर्संबंधों को उजागर करता है तथा पारिस्थितिक नारीवाद को भारतीय साहित्य और सांस्कृतिक संदर्भों में पुनर्परिभाषित करता है। यह शोध आलेख ‘तृन धरि ओट’ उपन्यास के माध्यम से नारीवाद और पारिस्थितिकी के अंतर्संबंध को विश्लेषित करते हुए पारिस्थितिक नारीवाद की अवधारणा को समझने और उसके बहुआयामी पक्षों की व्याख्या करने का प्रयास करता है।
शब्द कुंजी- पारिस्थितिक नारीवाद, पर्यावरणीय चेतना, स्त्री स्वायत्तता, मातृत्व की अवधारणा, न्यायप्रिय स्त्री, समतामूलक समाज, शिक्षा और स्वाधीनता, रामायण पुनर्पाठ, सामाजिक न्याय, संवेदनशीलता और
तर्कशीलता, लैंगिक भेदभाव।














