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January to March 2025 Article ID: NSS9120 Impact Factor:8.05 Cite Score:208 Download: 17 DOI: https://doi.org/10.63574/nss.9120 View PDf
समकालीन हिंदी साहित्यिक पत्रकारिता में भारतीय ज्ञान परंपरा की भूमिका
श्रीमती रूचि पालीवाल
शोधार्थी, जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय, उदयपुर (राज.)
शोध सारांश- भारतीय ज्ञान परंपरा, जो सहस्राब्दियों के चिंतन, अनुभव और सृजन का परिणाम है, ने भारतीय समाज और संस्कृति को गहराई से प्रभावित किया है। वेद, उपनिषद, दर्शनशास्त्र, काव्यशास्त्र, नीतिशास्त्र, आयुर्वेद, योग और कला जैसे विविध क्षेत्रों में इसका विशाल और समृद्ध विस्तार है। इक्कीसवीं सदी में जहाँ एक ओर वैश्विक सूचना क्रांति और पश्चिमी विचारों का तीव्र प्रवाह है, वहीं दूसरी ओर भारतीय चिंतन की प्रासंगिकता और पुनर्जागरण की आवश्यकता पर बल दिया जा रहा है। समकालीन हिंदी साहित्यिक पत्रकारिता, जिसमें साहित्यिक पत्रिकाएँ, अख़बारों के साहित्यिक परिशिष्ट, ऑनलाइन साहित्यिक पोर्टल और ब्लॉग शामिल हैं, इस संवाद और अन्वेषण का एक महत्वपूर्ण मंच है। प्रस्तुत शोध का उद्देश्य समकालीन हिंदी साहित्यिक पत्रकारिता में भारतीय ज्ञान परंपरा की उपस्थिति, उसके विभिन्न आयामों और उसके प्रभाव का गंभीर विश्लेषण करना है।
यह शोध ऐसे समय में विशेष रूप से प्रासंगिक है जब भारतीय ज्ञान परंपरा को लेकर एक नया विमर्श चल रहा है। भूमंडलीकरण और तकनीक के तीव्र प्रसार के कारण पाश्चात्य विचारों का प्रभाव बढ़ा है, जिसके परिणामस्वरूप कई बार भारतीय मूल्य और चिंतन हाशिए पर धकेल दिए जाते हैं। ऐसे में, साहित्यिक पत्रकारिता की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि यह विचारों के आदान-प्रदान, आलोचनात्मक विश्लेषण और सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने का एक सशक्त माध्यम है। यह शोध यह समझने में मदद करेगा कि कैसे हिंदी पत्रकारिता भारतीय ज्ञान परंपरा को पुनः स्थापित करने, उसकी व्याख्या करने और उसे समकालीन संदर्भों में प्रासंगिक बनाने में योगदान दे रही है। यह उन अंतरालों को भी उजागर करेगा जहाँ भारतीय ज्ञान परंपरा का और अधिक समावेश किया जा सकता है।
शब्द कुंजी-भारतीय ज्ञान परंपरा, हिंदी साहित्यिक
पत्रकारिता, समकालीन साहित्य, दर्शन, कला, संस्कृति, वैदिक ज्ञान, उपनिषद, आधुनिकता, प्रासंगिकता, मूल्य।














