
-
April to June 2025 Article ID: NSS9143 Impact Factor:8.05 Cite Score:9 Download: 2 DOI: https://doi.org/ View PDf
मनोविश्लेषणवाद और आधुनिक समाज
ऋतू धूरिया
शोधार्थी (हिंदी) सरदार पटेल विश्वविद्यालय, बालाघाट (म.प्र.)डॉ. संध्या बिसेन
सहायक प्राध्यापक (हिंदी) सरदार पटेल विश्वविद्यालय, बालाघाट (म.प्र.)
शोध सारांश- समाज और परिवार की प्राथमिक इकाई के रूप में व्यक्ति और उसकी मन किसी न किसी तरह से पूरे समाज को प्रभावित करता है। मनोविश्लेषण बाद में यही व्यक्ति के मन का ही विश्लेषण कर इसके विचार भावनाएं आदि को जानकर है हम समाज और व्यक्ति के मन अध्ययन कर समाज को एक उचित दिशा देने का प्रयास करते हैं। मनोविश्लेषणवाद मनोविज्ञान की ही एक शाखा है जो 20वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में हमारी जानकारी में आई । जिस प्रकार जिस प्रकार मनोविज्ञान “मानव व्यवहार का अध्ययन करता है ,उसी प्रकार मनोविश्लेषणवाद मन का विश्लेषण कर मन के गर्भ में छुपी हुई मूल प्रवृत्तियों का अध्ययन करता है । 20वीं शताब्दी में मनोविश्लेषणवाद अपने प्रारंभिक रूप में केवल मां की व्याख्या तक ही सीमित रहा परंतु धीरे-धीरे आधुनिक समाज में यह है बहुत अधिक प्रचलित हो रहा है यह है साहित्य के क्षेत्र में एक नई क्रांति को लाया है जिससे रचनाकारों समाज ने अपने पात्रों/व्यक्तियों के मानसिक शारीरिक क्रियाकलापों के बीच मन में छुपे हुए भावों को उत्तरदाई पाया है।
शब्द कुंजी -मनोविश्लेषणवाद व मनोविज्ञान का संबंध, मनोविश्लेषणवाद
और समाज के बीच संबंध,मनोविश्लेषणवाद का समाज पर प्रभाव ,व्यक्तित्व विकास के महत्वपूर्ण
चरण।














